महत्वपूर्ण मुद्दा
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से स्वास्थ्य का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए स्वास्थ्य के विषय को कतई हल्के से नहीं लिया जा सकता है। भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश अभी भी बहुत अधिक नहीं हो रहा है। यही वजह है कि हाल-फिलहाल में भारत की स्वास्थ्य नीति में यह ऐसा मुद्दा बनकर उभरा है, जिस पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है। पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) अनुमान जारी किए हैं।
अनुमानों के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद में स्वास्थ्य में सरकारी व्यय की हिस्सेदारी वर्ष 2014-15 के 1.13 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 1.84 प्रतिशत हो गई। जबकि सामान्य सरकारी व्यय की हिस्सेदारी वर्ष 2014-15 के 3.94 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 6.12 प्रतिशत हो गई।
यह वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता (विशेष रूप से कोविड-19 महामारी की प्रतिक्रिया में) को दर्शाती है। सरकारी स्वास्थ्य खर्च के जो आंकड़े जारी किए गए हैं, वो बताते हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाया गया है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस दौरान सरकारी स्वास्थ्य खर्च (जीएचई) 28.6 प्रतिशत से बढ़कर 48 प्रतिशत हो गया। जीएचई का लगातार बढ़ना भारत की स्वास्थ्य नीति के लिहाज़ से उपलब्धि है।
गौरतलब है कि सरकारों की तरफ से स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जो भी खर्च किया जाता है, उसका लगभग दो-तिहाई हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा और एक-तिहाई हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया गया है। बढ़ते सरकारी स्वास्थ्य व्यय, कम होते जेब खर्च और बढ़ते सामाजिक सुरक्षा व्यय जैसे प्रमुख संकेतक एक लचीली और समावेशी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का संकेत देते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र को लगातार सुधारना है, तो स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता, स्वच्छता एवं लोगों के लिए आवास उपलब्ध कराने पर ध्यान दिए जाने और इसके लिए पूंजीगत खर्च को बढ़ाने की जरूरत है। राज्यों की सरकारें एवं केंद्र सरकार इस बात पर जोर दें कि देश में सरकारी स्वास्थ्य खर्च में गिरावट नहीं आए।
जाहिर है कि ऐसा होने पर ही भारत 2025 तक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक पहुंचाने के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल कर सकता है। ऐसा होने पर भारत की सफलता से दुनिया के विकासशील देश सबक लेंगे और भारत द्वारा उठाए गए कदमों को अपने यहां लागू करेंगे। स्पष्ट है कि अगर इस तरह की कोशिशें कामयाब होती हैं तो भारत पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण बनकर उभरेगा।