पड़ोस में उम्मीद की नई किरण

पड़ोस में उम्मीद की नई किरण

पड़ोसी देश श्रीलंका में करीब दो वर्ष पहले उपजे आर्थिक संकट के बीच जो हालात पैदा हुए थे, उसके मद्देनजर विश्व में यह आशंका स्वाभाविक थी कि इस स्थिति से निकलने में देश को शायद काफी वक्त लग जाए, लेकिन राष्ट्रपति के चुनावों के बाद वहां नई सत्ता की स्पष्ट तस्वीर उभर कर सामने आई है। वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने नौवें राष्ट्रपति के रूप में श्रीलंका की सत्ता संभाल ली है। दिसानायके की जीत का मतलब है कि श्रीलंका की राजनीति में एक नई शुरुआत हो रही है। देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी की सरकार बनी है। दिसानायके ने राष्ट्रपति की शपथ लेते ही अपने वादे के अनुरूप देश की संसद भंग कर, नवंबर में आम चुनाव की घोषणा भी कर दी।

गौरतलब है कि श्रीलंका में वर्ष 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके को सिर्फ तीन फीसद वोट मिले थे। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस बीच श्रीलंका में आर्थिक संकट और बिगड़ती स्थिति के बीच मुख्यधारा के बाकी राजनीतिक पक्षों में से किसी की भी आम लोगों की अपेक्षाओं या उम्मीदों के बीच जगह नहीं बची थी। देश से भ्रष्टाचार खत्म करने, मजदूरों की आवाज उठाने और अच्छा प्रशासन देने के दिसानायके के वादे ने एक तरह से अंधेरे में घिरी आम जनता को उम्मीद की रोशनी दी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इस चुनाव में उनके भ्रष्टाचार विरोधी और लोक कल्याणकारी मुद्दों को भारी समर्थन मिला। 

नई सरकार आने के बाद भारत और उसके पड़ोसी देशों की इस बात पर नजर रहेगी कि नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के समीकरण में श्रीलंका क्या रुख अख्तियार करेगा? हालांकि दिसानायके ने शपथ लेने के बाद भारत से संबंधों को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। पहले से ही इस बात की भी आशंका जताई जाती रही है कि चीन के कर्ज के जाल में उलझने का असर श्रीलंका के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों और नीतियों पर पड़ सकता है।

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि राष्ट्रपति दिसानायके मार्क्सवादी हैं इसलिए राजनीतिक क्षेत्र में उनकी छवि चीन समर्थक की है। ऐसे में यह शंका होना भी लाजमी है कि कहीं चीन मार्क्सवादी राष्ट्रपति के शासनकाल का फायदा उठाकर भारत के सुरक्षा हितों को नुकसान न पहुंचा दे। साथ ही वामपंथी विचारधारा के एक नेता के राष्ट्रपति बनने के बाद यह बात भी गौर करने वाली होगी कि श्रीलंका चीन के प्रभाव से किस हद तक मुक्त रह पाता है?