इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. दंपति के खिलाफ हत्या के मामले को किया खारिज, कहा-  समन जारी करना एक गंभीर मामला

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. दंपति के खिलाफ हत्या के एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि समन जारी करना एक गंभीर मामला है और यह तब और गंभीर हो जाता है, जब अंतिम जांच रिपोर्ट को खारिज करने के बाद समन जारी किया जाए। पुलिस द्वारा की गई जांच, वैज्ञानिक जांच और विशेष जांच दल की रिपोर्ट को अकारण खारिज नहीं किया जा सकता है। समन आदेश में पुख्ता कारण अपेक्षित होते हैं।

कोर्ट ने आगे कहा कि अंतिम रिपोर्ट को खारिज करने के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को समन जारी करने के समर्थन में उचित कारण बताना चाहिए था। अगर जांच उचित नहीं थी तो आगे की जांच के लिए निर्देश पारित किया जाना चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि समन आदेश पारित करते समय ट्रायल कोर्ट द्वारा वैज्ञानिक परीक्षणों और गवाहों के बयानों का ठीक से विश्लेषण नहीं किया गया था। फलस्वरुप कोर्ट ने अधूरे साक्ष्यों के आधार पर जारी समन आदेश को रद्द करते हुए मृतक के रिश्तेदारों की गवाही, अस्पताल के कर्मचारियों के बयान, विशेषज्ञों की राय और वैज्ञानिक जांचों के परिणामों के आधार पर डॉ. दंपति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने डॉ राजेश सिंह व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार गाजीपुर जिले के सिंह लाइफ केयर हॉस्पिटल लिमिटेड, राजेपुर के मालिक के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सर्जरी के लिए उसने अपनी पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया था। जब उसका बेटा डॉक्टर दंपति को बुलाने गया तो उन्होंने कथित तौर पर उसे इतना पीटा कि मौके पर ही उसकी मौत हो गई जबकि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत शिकायतकर्ता के भतीजे ने एसआईटी के समक्ष दिए बयान में कहा कि मृतक और अन्य रोगियों के तीमारदारों के बीच कुछ विवाद हुआ था, जिसमें अस्पताल के कर्मचारियों ने हस्तक्षेप किया और मृतक को अस्पताल के बाहर ले गए, जिसके बाद दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। विशेष जांच दल की रिपोर्ट, लाई डिटेक्टर टेस्ट और नार्को टेस्ट रिपोर्ट में भी यह निष्कर्ष निकला कि मृतक की मृत्यु सड़क दुर्घटना के कारण हुई थी, ना कि उसकी हत्या की गई। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता और उसकी बेटी के बयानों पर भरोसा करते हुए अंतिम जांच रिपोर्ट को दरकिनार कर याचियों को समन आदेश जारी किया। अतः आधे-अधूरे साक्ष्यों के आधार पर समन का आदेश कानूनी रूप से प्रभावी नहीं रह सकता है।

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