धीमी रफ्तार

धीमी रफ्तार

महिलाएं और लड़कियां दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन लैंगिक असमानता हर जगह बनी हुई है जो सामाजिक प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है। लैंगिक समानता एक मौलिक मानव अधिकार है और इसे बढ़ावा देना स्वस्थ समाज के लिए ज़रूरी है। यानी शांतिपूर्ण, समृद्ध और टिकाऊ दुनिया के लिए आवश्यक आधार है।

सोमवार को जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व भर में, लैंगिक समानता और महिलाओं व लड़कियों की मज़बूती में प्रगति दर्ज की गई है, मगर इसकी रफ्तार बेहद धीमी है। जबकि लैंगिक समानता एक सर्वव्यापी उद्देश्य है और इसे राष्ट्रीय नीतियों, बजटों और संस्थानों का मुख्य केंद्र होना चाहिए। सतत विकास लक्ष्यों पर जारी डेटा के अनुसार लैंगिक समानता हासिल करने के लिए निर्धारित पांचवें टिकाऊ विकास लक्ष्य के सभी संकेतक फ़िलहाल पहुंच से दूर हैं।

चिंता की बात है कि वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2024 के मुताबिक भारत 146 देशों में से 129 वें स्थान पर है। यह भारत को नीचे से 18वें स्थान पर रखता है। कुल मिलाकर भारत की रैंकिंग पिछले कई वर्षों से निचले 20 में बनी हुई है। राजनीतिक सशक्तीकरण आर्थिक भागीदारी एवं अवसरों के मामले में लैंगिक अंतराल सबसे ज्यादा बना हुआ है। असमानता दूर करने के लिए महिलाओं को रोज़गार के अवसरों और पूंजी तक समान पहुंच मिलनी चाहिए।

भारत में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार संपत्ति में महिलाओं का समान अधिकार है परंतु पारिवारिक संपत्ति पर महिलाओं का अधिकार प्रचलन में नहीं है। इसलिए उनके साथ विभेदकारी व्यवहार किया जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रुढ़ियों के कारण विकास के कम अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। लैंगिक असमानता के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र के साथ वैज्ञानिक क्षेत्र, मनोरंजन क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र और खेल क्षेत्र प्रमुख हैं। 

भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता जटिल रूप में व्याप्त है। हालांकि समाज की मानसिकता में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श किया जा रहा है। लैंगिक समानता के मामले में देश में कुछ प्रगति हुई है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वन स्टॉप सेंटर योजना, महिला हेल्पलाइन योजना और महिला शक्ति केंद्र जैसी योजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन अभी भी ज्यादा काम करने की जरूरत है। लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए संगठनात्मक नीतियों में लैंगिक मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए।