Kanpur: मृत्यु के कारण का प्रमाणन जरूरी; जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का किया जाएगा क्षमता संवर्धन
कानपुर, अमृत विचार। चिकित्सकीय प्रमाणन (एमसीसीडी) के कार्य में जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज एक मॉडल बन सके, इसके लिए डॉक्टरों का क्षमता संवर्धन किया जाएगा। इसकी शुरूआत मास्टर ट्रेनर्स और मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के प्रशिक्षण के साथ शुरू कर दी गई है। इसके तहत मौत के कारणों के आंकड़ों का विश्लेषण कर अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके जरिये लोगों के स्वास्थ्य हित में नीति निर्माण भी होगा। वहीं, संस्थागत मौत के कारणों की गुणवत्तापूर्ण रिपोर्टिंग भी हो सकेगी।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य विभाग और टाटा कैंसर संस्थान ने गृह मंत्रालय के जनगणना कार्य निदेशालय के सहयोग से प्रशिक्षण की शुरूआत की। प्राचार्य डॉ. संजय काला ने कहा कि मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाणन जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 (यथा संशोधित 2023) के अन्तर्गत किया जाता है। मृतक की अंतिम परिचर्या करने वाले सभी डॉक्टर के द्वारा मृत्यु के कारण का प्रमाणन किया जाना अनिवार्य है और इसकी प्रति भी सरकारी प्रावधानों के अनुसार मृतक के परिजन को देनी है।
यह प्रमाणन फॉर्म विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा निर्धारित प्रारूप के अनुरूप ही हैं। प्रदेश के सभी सरकारी अस्पताल व मेडिकल कॉलेज जन्म-मृत्यु पंजीकरण रजिस्ट्रार के रूप में अधिसूचित हैं। मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाणन भी मृत्यु पंजीकरण की प्रकिया का हिस्सा है। वर्तमान में जन्म व मृत्यु पंजीकरण का सभी कार्य ऑनलाइन वेब पोर्टल से ही किया जा रहा है। मृत्यु पंजीकरण के समय ही मृत्यु के कारण की डेटा एंट्री भी ऑनलाइन पोर्टल पर कर दी जाती है।
राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टल से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा मृत्यु के कारणों की रिपोर्ट जारी की जाती है। उम्मीद है कि इस कार्य में कानपुर प्रदेश के सामने मॉडल के रूप में प्रस्तुत होगा। टाटा कैंसर संस्थान के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ.बुरहान और डॉ. शरवरी के साथ सहायक निदेशक डॉ. गौरव पाण्डेय ने डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण में मेडिकल कॉलेज के सीनियर और जूनियर डॉक्टरों के अलावा फैकल्टी मेंबर भी मास्टर ट्रेनर के तौर पर शामिल हुए।
उत्तर प्रदेश साल दर साल कर रहा सुधार
संयुक्त निदेशक जनगणना कार्य निदेशालय ए के सिंह सोमवंशी ने कहा कि वर्ष 2018 में जहां प्रदेश में 38 फीसदी मृत्यु पंजीकरण होता था। वहीं, पिछले तीन वर्षों में यूपी में 72 फीसदी तक मृत्यु पंजीकरण में सुधार हुआ है। राज्य साल दर साल अपने पंजीकरण में सुधार कर रहा है।
पिछले तीन सालों में यूपी को मॉडल राज्य के रूप में विकसित किया गया है और अन्य राज्य भी इस मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं। डॉ. संतोष बर्मन ने कहा कि मृत्यु के कारण के आंकड़ों का एकत्रीकरण नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। मृत्यु के कारणों का पता लगाना और प्रमाणीकरण हमारे व्यावसायिक दक्षता को भी बढ़ाता है। इससे अनुसंधान और नवाचार को भी बढ़ावा मिलता है।