वैश्विक साख बढ़ी

वैश्विक साख बढ़ी

वर्ष 2024 में भारत ने वैश्विक व्यवस्था में अपने को मजबूती से रखने के साथ-साथ वैश्विक दक्षिण की आवाज बनने का सफल प्रयास किया है। इससे भारत की वैश्विक साख बढ़ी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और कई वैश्विक संस्थाओं ने वैश्विक मंदी के बीच भारत को एक उज्ज्वल स्थान के रूप में स्वीकार किया है। इकोनॉमी वाच की ताजा रिपोर्ट की मानें तो चालू और अगले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। वृद्धि की यह दर बरकरार रही तो वैश्विक जीडीपी में ठहराव आने पर भारत आर्थिक एवं वाणिज्यिक संभावनाओं का बड़ा केंद्र बन जाएगा।

ऐसे समय में, जब पश्चिम एशिया तनावपूर्ण मसलों में उलझा हुआ है और क्षेत्रीय युद्ध के मुहाने पर है, तब वहां के सभी प्रमुख हितधारकों- खाड़ी के देशों, इजरायल और ईरान के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध साधने की क्षमता भारत की कूटनीतिक सफलता के बारे में भी बहुत कुछ कहती है। चीन से निपटने में भारत की मदद करने वाली दो ताकतें अमेरिका और रूस हैं। इन दोनों देशों के साथ साझेदारी विकसित करने में भारत प्रभावी रूप से सफल रहा है। वैश्विक कल्याण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दुनिया को अधिक सुरक्षित और समृद्ध बनाती है। 

महत्वपूर्ण है कि विश्व इसे स्थिरता के एक महत्वपूर्ण स्तंभ, एक विश्वसनीय मित्र और वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकास के इंजन के रूप में देखता है। हमारे पास ऐसा करने का अवसर भी है। हमारा देश इस समय महत्वपूर्ण स्थिति में है, जिसमें वह विश्व के अन्य देशों को यह बात आसानी से समझा सकता है कि किस तरह एक साथ शांतिपूर्ण तरीके से रहा जाए और प्रकृति का पोषण करें। जैसे-जैसे भारत आर्थिक वृद्धि और समानता हासिल कर रहा है, उसे देखते हुए पूरा विश्व हमसे कुछ सीखने के लिए उत्सुकता से देख रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि विश्व में अपने स्थान को लेकर आश्वस्त भारत सुदृढ़ स्थिति में मुद्दों से निपटने में सक्षम होगा। पिछले 10 वर्षों में प्रत्येक स्तर पर देश में सकारात्मक भावना पैदा की है। अधिकांश देशों के लिए भारत आज एक महत्वपूर्ण भागीदार है। हमने तमाम देशों को अपनी ओर आकर्षित किया है। चूंकि हमारे पास अवसर हैं, इसलिए हमें अपनी वैश्विक छवि को मजबूत बनाने का काम जारी रखना चाहिए।

भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। फिर भी अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं इतनी पेचीदा होती हैं कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों या औद्योगिक एवं विकासशील देशों के समूह जी-7 के लिए भी इनका व्यापक समाधान खोज पाना मुश्किल होता है। मगर ऐसे में इसे वैश्विक स्तर पर पेचीदा संवाद प्रक्रिया में अपनी बात कारगर तरीके से रखने के लिए अपनी क्षमता बढ़ानी होगी।