प्रयागराज : सरकारी अधिवक्ता द्वारा दर्ज गलत प्राथमिकी पर सरकार से जवाब तलब

प्रयागराज : सरकारी अधिवक्ता द्वारा दर्ज गलत प्राथमिकी पर सरकार से जवाब तलब

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुर्भावना पूर्ण उद्देश्य से प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को मामले की जांच करने के निर्देश दिए हैं। मामले के अनुसार सहायक जिला सरकारी अधिवक्ता ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए समाज कल्याण अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी और एससी/एसटी एक्ट, 1989 के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाकर मुआवजे की मांग की।

प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि पूर्व और वर्तमान जिला समाज कल्याण अधिकारी, झांसी के रूप में कार्यरत याचियों ने अपनी आधिकारिक क्षमता का प्रयोग कर अधिनियम के तहत मुआवजे का केवल एक हिस्सा वितरित किया था और बाकी को गैरकानूनी रूप से रोक दिया था। हालांकि याचियों ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने कल्याण योजना के तहत मुआवजा पाने के लिए नियमित रूप से झूठा आपराधिक मुकदमा दाखिल किया है। इसके अलावा कोर्ट को यह भी बताया गया कि शिकायतकर्ता ने विभिन्न व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए लगभग 27 लाख रुपए लिए हैं।

कोर्ट को यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया कि याची भुगतान किए गए मुआवजे के लिए जिम्मेदार नहीं थीं, क्योंकि वह उस समय झांसी में तैनात ही नहीं थीं और दूसरे याची के समय मुआवजे को चार सदस्यीय समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था। मामले की स्थितियों पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने ललिता यादव और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा मामला आधिकारिक पद के दुरुपयोग का एक स्पष्ट उदाहरण है और पूरे मामले में सचिव, गृह द्वारा उचित कार्यवाही की जाये और न्यायालय को इस बारे में सूचित किया जाए कि क्या कार्यवाही की गई।

अंत में कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, झांसी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, झांसी को कार्यवाही के संबंध में व्यक्तिगत हलफनामा मामले की अगली सुनवाई यानी 21. 10.2024 को कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है और तब तक याचियों को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की गई है।

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