अदालत ने राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किए गए युवक की मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंपी

अदालत ने राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किए गए युवक की मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंपी

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को 23 वर्षीय एक युवक की मौत से संबंधित मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया, जिसे 2020 में शहर के उत्तर पूर्वी हिस्से में हुए दंगों के दौरान कथित तौर पर पीटा गया और राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया था। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हुआ था। सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में पुलिस कर्मियों द्वारा फैजान को चार अन्य मुस्लिम पुरुषों के साथ कथित तौर पर राष्ट्रगान और ‘‘वंदे मातरम’’ गाने के लिए मजबूर करते हुए एवं पीटते हुए देखा जा सकता है। फैजान की मां ने मामले की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने के लिए याचिका दायर की थी। 

इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि अभी तक पहचाने नहीं गए पुलिसकर्मियों पर ‘‘धार्मिक कट्टरता से प्रेरित ’ होकर मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन करने का आरोप हैं। यह तथ्य कि अपराधी स्वयं जांच एजेंसी के सदस्य हैं, भरोसा पैदा नहीं करता है। न्यायमूर्ति भंभानी ने टिप्पणी की कि पुलिस जांच के दौरान घृणा अपराधों से तत्परता से निपटने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की भावना को पूरा नहीं किया गया है। अदालत ने कहा, ‘‘घृणा-अपराध की घटनाओं को रोकने के बजाय वर्तमान मामले में कुछ पुलिसकर्मी याचिकाकर्ता के बेटे के खिलाफ भीड़-हिंसा में संलिप्त पाए गए हैं।’’ अदालत ने आदेश दिया, ‘‘इन परिस्थितियों में, यह अदालत याचिका का निस्तारण करने को सहमत है और निर्देश देती है कि आईपीसी की धारा 147, 148, 149 और 302 के तहत भजनपुरा थाना में दिनांक 28.02.2020 को पंजीकृत मामले की जांच तत्काल कानून के तहत आगे की जांच के लिए सीबीआई, नयी दिल्ली को हस्तांतरित कर दी जाएगी।’’ उच्च न्यायालय ने अपने 38 पन्नों के आदेश में कहा कि दिल्ली पुलिस ने अब तक जो कुछ किया है, वह ‘‘बहुत कम और बहुत देर से किया गया’’ है। उसकी अब तक की जांच में भी कई विसंगतियां और भटकाव है। 

प्रसारित वीडियो पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि तस्वीरों में स्पष्ट रूप से कई पुलिसकर्मी फैजान और अन्य युवकों को घेरते, घसीटते, लाठियों से पीटते, उनके साथ दुर्व्यवहार करते और उन्हें राष्ट्रगान गाने को मजबूर करते नजर आ रहे हैं जबकि वे गंभीर रूप से घायल और असहाय होकर सड़क किनारे पड़े हैं। अदालत ने सवाल किया कि घटना के बाद फैजान को चिकित्सकों की सलाह के अनुसार इलाज के लिये अस्पताल न ले जाकर पुलिस थाने क्यों ले जाया गया और वहां जो कुछ हुआ उसके संबंध में कोई जांच क्यों नहीं की गई। अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने इस मुद्दे को दबा दिया है। यह मानते हुए भी कि हिरासत में कोई हिंसा नहीं हुई, यह तथ्य कि पुलिस ने फैजान को उस समय थाने में रखा जब उसे स्पष्ट रूप से गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता थी। अपने आप में यह कर्तव्य की आपराधिक उपेक्षा का मामला है, या इससे भी बदतर मामला है।’’ 

अदालत ने कहा कि निष्पक्ष जांच, निष्पक्ष सुनवाई और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हिस्सा है। इसके बिना न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचेगा और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास खत्म हो जाएगा। अदालत ने, ‘‘अगर कोई अन्य कारण न भी हो तो जांच की विश्वसनीयता की रक्षा करने और पीड़ितों में प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में विश्वास जगाने के लिए जांच का हस्तांतरण आवश्यक है।’’ किस्मतुन ने 2020 में दाखिल याचिका में आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके बेटे के साथ मारपीट की और उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा एवं उसे अति आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित किया। इसकी वजह से रिहाई के बाद उसी साल 26 फरवरी को उसकी मौत हो गई। संशोधित नागरिकता कानून समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा नियंत्रण से बाहर होने के बाद 24 फरवरी, 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में कम से कम 53 लोग मारे गए और लगभग 700 अन्य घायल हो गए।

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