AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया विरोध, कहा-मुसलमान शरीयत से हैं पाबंद 

AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया विरोध, कहा-मुसलमान शरीयत से हैं पाबंद 

नई दिल्ली। ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की वर्किंग कमेटी की बैठक रविवार को हुई है। नई दिल्ली में हुई इस बैठक में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का विरोध हुआ है। 

दरअसल, 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार अन्य धर्म की महिलाओं की तरह ही है। तलाक के बाद मुस्लिम महिलाएं  गुजारा भत्ता लेने के लिए याचिका दायर कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हुई बैठक में वर्किंग कमेटी ने कहा कि मुसलमान शरीयत से पाबंद है, वह उससे अलग नहीं सोच सकता। शादी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला समस्या पैदा कर सकता है, तलाक होने के बाद गुजारा भत्ता उचित नहीं है। 

वहीं उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने पर चुनौती देने की बात भी AIMPLB की वर्किंग कमेटी की तरफ से कही गई है।  कमेटी ने यह बात संविधान का हवाला देते हुये कही है। कमेटी ने कहा है कि धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं के हिसाब से रहने का अधिकार हमें संविधान की तरफ से मिला है। वर्किंग कमेटी की तरफ से चेतावनी दी गई है कि कानून के शासन की निरंतर उपेक्षा से अराजकता फैल सकती है और भारत की प्रतिष्ठा खराब हो सकती है। बोर्ड ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह से संबंधित नए विवादों पर विचार करने के लिए निचली अदालतों की आलोचना की। कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट से ‘पूजा स्थल अधिनियम, 1991’ को बरकरार रखने और विरासत मस्जिदों की रक्षा करने का आग्रह किया, साथ ही उन्हें ध्वस्त करने या बदलने के किसी भी प्रयास के प्रति आगाह भी किया।

वर्किंग कमेटी की यह बैठक नई दिल्ली में राष्ट्रपति हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में हुई। बैठक में निर्णय लिया कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर शीर्ष अदालत का हालिया फैसला इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ था। बैठक की कार्रवाई का संचालन महासचिव मौलाना मुहम्मद फजलुर्रहीम मुजादीदी ने किया और इसमें देश भर से प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बोर्ड ने भारत में समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।

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