कांग्रेस की मुश्किल

कांग्रेस की मुश्किल

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव पास आ रहे हैं, कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। साथ ही कांग्रेस का कुनबा भी कम होता जा रहा है। पिछले कुछ महीनों से शायद ही ऐसा कोई दिन गया हो जिस दिन कांग्रेस के किसी नेता ने पार्टी न छोड़ी हो।

बुधवार को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता और कानपुर की राजनीति का बड़ा चेहरा माने जाने वाले पूर्व विधायक अजय कपूर बीजेपी में शामिल हो गए। अजय कपूर राहुल गांधी और प्रियंका के बेहद करीबी नेताओं में थे। इसके अलावा महाराष्ट्र में पूर्व कांग्रेस विधायक पद्माकर वलवी भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं। वलवी उत्तरी महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में से एक हैं।

लोस चुनाव से ऐन पहले दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का पार्टी को छोड़ना कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी साबित होता जा रहा है। उधर इंडिया गठबंधन भी कांग्रेस को कोई खास तवज्जो नहीं दे रहा है। बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने बंगाल की सभी 42 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर यह संदेश दे दिया कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगी।

ममता की यह घोषणा कांग्रेस के साथ-साथ विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के लिए भी झटका है। इसके पहले हाल ही में केरल में वाम दलों ने भी कांग्रेस को ऐसा ही झटका दिया था। वाम दलों ने तो राहुल गांधी की वायनाड संसदीय सीट यह कहकर अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया कि यदि उन्हें भाजपा का मुकाबला करना है तो वह उत्तर भारत जाकर चुनाव लड़ें।

एक ओर नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना, दूसरी ओर कांग्रेस की गठबंधन में कमजोर स्थिति भविष्य में पार्टी के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े कर रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस स्थिति के लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार है। क्योंकि जब पार्टी प्रमुख राहुल गांधी को लोस चुनाव के मद्देनजर पार्टी को जोड़कर रखना चाहिए था, तब वे भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हैं।

साथ ही पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कांग्रेस छोड़ने वालों को रोकने या उनसे संवाद करने के बजाय उलटा उनकी आलोचना और उनके पार्टी छोड़ने पर यह कहकर समस्या से मुंह मोड़ रहा है कि वे सत्ता के भूखें और लालची लोग हैं। शीर्ष नेतृत्व का यह तंज कहीं से भी तर्क संगत नहीं कहा जा सकता है।

कांग्रेस को समझना होगा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर गड़ा लेने से आंधियों से पार नहीं पाया जा सकता है। यदि कांग्रेस वाकई चुनावों और देश हित को लेकर गंभीर है तो उसको आत्ममंथन कर पार्टी के बिखराव को रोकना होगा। यही देश व उसके हित में भी होगा, क्योंकि देश की उन्नति में सशक्त विपक्ष की भी महती भूमिका होती है।