राम मंदिर आंदोलन में मैंने उड़ते देखी हैं संविधान की धज्जियां : साध्वी ऋतम्भरा

राम मंदिर आंदोलन में मैंने उड़ते देखी हैं संविधान की धज्जियां : साध्वी ऋतम्भरा

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ। राम मंदिर आंदोलन की अग्रिम पंक्ति की नेत्री साध्वी ऋतम्भरा अब जश्न के मूड में हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की खुशी उनके चेहरे पर खेलती दिखाई दे रही है। प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव में शामिल होने वाली वह उन गिनी-चुनी हस्तियों में शुमार हैं जिन्हें आयोजन में ससम्मान बुलाया गया है। शनिवार को अयोध्या रवाना होने से पहले अमृत विचार से मुखातिब साध्वी ऋतम्भरा ने छूटते ही कहा कि ‘जो राम का नहीं है वो किसी काम का नहीं’ है। राम मंदिर आंदोलन में मैंने संविधान की धज्जियां उड़ते देखी हैं। प्रस्तुत हैं साध्वी ऋतम्भरा से हुई बातचीत के चुनिन्दा अंश-

राम मंदिर आन्दोलन ने आपको बहुत कम उम्र में काफी बड़ा कद दे दिया था लेकिन राजनीति की चौड़ी सड़क छोड़कर आप वृन्दावन में आश्रम बनाकर बस गईं, क्यों ?

मैं राम की लड़ाई लड़ने आयी थीं। यह लड़ाई भारत के स्वाभिमान की थी। मैंने पहले दिन ही तय कर लिया था कि मंदिरों की लड़ाई को सत्ता से परे रखूंगी। इस लड़ाई में मैंने जो दुःख झेले, जो प्रताड़नाएं सहीं। दुनिया के सामने मेरी जो तस्वीर बनाई गई। विदेशों में मुझे जिस नजरिये से देखा गया। इंग्लैण्ड का वीजा मिलने में जो दिक्कतें आईं। उसने मुझे इस बात के लिए तैयार किया कि राम का संघर्ष जारी रखना है और सत्ता के रास्ते पर नहीं बढ़ना है।

अच्छे लोग राजनीति में रहें तो हालात और भी बेहतर हो सकते हैं, ऐसा आप क्यों नहीं सोचतीं?

आपकी बात सही है लेकिन मुझे लगता है कि मेरे जैसे लोगों को सत्ता से दूर रहकर राजनीति को सचेत करने का काम करना चाहिए। राजनीति में अच्छे लोग आने लगे थे। मैंने समझ लिया था कि यह अच्छे लोग राम मंदिर का रास्ता बनाएंगे। इसी वजह से मैं आश्रम बनाकर सुखी हो गई। वृन्दावन में वात्सल्य आश्रम के जरिये मैंने कितना बढ़िया काम किया इसे देखने के बजाय लोग लगातार मुझ पर आरोप लगाते रहे। आज मोदी जी और योगी जी ने साबित कर दिया कि सत्ता सही रास्ते पर हो तो राजनीति सही दिशा में बढ़ ही जाती है।

राजनीति और सत्ता को संविधान के दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए, इससे आप कितना सहमत हैं? 

संविधान की रक्षा तो सत्ता के सामने पहली शर्त होती है। राम मंदिर आन्दोलन में मैंने संविधान की धज्जियां उड़ते देखीं। संविधान बचाने के नाम पर निहत्थे राम भक्तों पर गोलियां चलाई गईं। यह गोलियां तुष्टिकरण के नाम पर चलाई गईं थीं। यह बात सभी को अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि भारत राम और कृष्ण के बिना कुछ नहीं है। राम की लड़ाई तो भारत के स्वाभिमान की लड़ाई थी। हमें खुशी है कि उस लड़ाई का हम हिस्सा रहे। हम इस खुशी के साथ अयोध्या जा रहे हैं कि दुनिया ने जो सवाल हम पर उठाए थे वह झूठे साबित हुए। पूरे सम्मान के साथ प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।

आप सौभाग्यशाली हैं कि आपको निमंत्रण मिला। बहुत से लोग तो इसी से नाराज हैं कि बुलाया नहीं? 

राजनीति करने वाले तो राजनीति ही करेंगे। यह उनका पेशा है। उन्हें हम क्या कहें। बस यही कह सकते हैं कि ऐसी राजनीति करने वालों के दिन लद गए। राजनीति करने वालों को जनता के मन को समझना होगा। राजनीति सत्य को स्थापित करने के लिए है। राजनीति भारत को गाली देने के लिए नहीं है। राजनीति किसी को शरणार्थी बनाकर जीने देने के लिए नहीं है।

राजनीति भाग्य बदल देने का नाम भी है 

यही बात समझ ली गई होती तो भारत को संताप के दिन नहीं देखने पड़ते। भारत को उसका खोया गौरव बहुत पहले ही मिल गया होता। राजनीति के लिए कुशलता की जरूरत होती है। राजनीति करने वाले का लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। मैं आज देख पा रही हूं कि बीजेपी वाले जीते या हारे लेकिन उनका लक्ष्य राम का मंदिर ही रहा। वह कभी लक्ष्य से नहीं भटके। नतीजा देखिए आज बीजेपी पर सवाल उठाने वालों के पेट में दर्द हो रहा है। भाग्य बदल गया या नहीं।

अब राम मंदिर का लक्ष्य पूरा हुआ। आपका वात्सल्य आश्रम वास्तविक परिवार की परिकल्पना को भी हासिल कर चुका है। अपने दोनों लक्ष्य हासिल होने के बाद कौन आपका दोस्त है और कौन आपका दुश्मन ?

(साध्वी ऋतम्भरा के चेहरे पर मुस्कान खेल जाती है ) जो राम का नहीं है वो किसी काम का नहीं है। अब तक दुनिया में जहां भी जाती थीं मेरे विरोध में खड़े लोग दिखाई देते थे। अब मैंने खुद को साबित कर दिया है। राजनीति न तब मुझे आकर्षित करती थी न अब। वात्सल्य को और श्रेष्ठ बनाने के लिए जुटूंगी।

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