नीतीश कुमार ने पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की बैठक में उठाया बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सामाजिक आर्थिक सर्वे रिपोर्ट से उजागर प्रदेश की गरीबी और पिछड़ेपन का हवाला देते हुए आज एक बार फिर राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की। कुमार ने रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में यहां मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित ‘संवाद’ में 26वीं पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की बैठक में कहा कि वह वर्ष 2010 से ही बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा की मांग कर रहे हैं।
बिहार बहुत ही ऐतिहासिक राज्य है, लगातार विकास के बाद भी बिहार विकास के मापदंडों में राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। बिहार, विशेष राज्य के दर्जे की सभी शर्त्तों को पूरा करता है। अब तो जाति आधारित गणना में गरीबी एवं पिछड़ेपन के आंकड़े भी इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने शाह से कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के बारे में आप जरूर सोचेंगे।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज की बैठक में केन्द्र एवं राज्य सरकार के बीच कई मुद्दों पर बात होनी है। वह चाहते थे कि केन्द्र सरकार जातीय आधार पर जनगणना कराये। इसके लिए वह शुरू से ही प्रयासरत थे। इसके लिए वर्ष 2019 एवं 2020 में बिहार विधानमंडल में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया। फिर वह सभी दलों के प्रतिनिधियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले।
केन्द्र सरकार द्वारा इस पर कोई विचार नहीं किया गया। राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना करा ली है और इसके आंकड़े भी जारी कर दिये गये। श्री कुमार ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ सात लाख 25 हजार 310 है, जिनमें से 53 लाख 72 हजार 22 लोग बिहार से बाहर के रह रहे हैं और 12 करोड़ 53 लाख 53 हजार राज्य में रह रहे हैं।
जाति आधारित गणना में पिछड़ा वर्ग 27.12 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा 36.01, अनुसूचित जाति 19.65, अनुसूचित जनजाति 1.68 और सामान्य वर्ग 15.52 प्रतिशत की आबादी पायी गयी है। इन आंकड़ों के आधार पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित सभी पार्टियों की सहमति से समाज के सभी कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण में इनकी भागीदारी बढ़ाने का निर्णय लिया गया।
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