मणिपुर : कुकी जो समुदाय ने अलग प्रशासन की मांग को लेकर निकालीं रैलियां
इंफाल/चुराचांदपुर। मणिपुर के कई जिलों में कुकी जो समुदाय के हजारों लोगों ने अलग प्रशासन की मांग को लेकर बुधवार को सड़कों पर रैलियां निकालीं। चुराचांदपुर में कुकी-जो समुदाय के संगठन 'जो यूनाइटेड' के तत्वावधान में आंदोलनकारियों ने लमका पब्लिक ग्राउंड से उपायुक्त कार्यालय के पास 'वॉल ऑफ रिमेंबरेंस' तक तीन किलोमीटर लंबा मार्च निकाला।
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उन्होंने केंद्र से कुकी जो समुदाय के प्रभुत्व वाले राज्य के क्षेत्रों में एक अलग प्रशासन स्थापित करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का आग्रह भी किया। आंदोलनकारियों ने इस संबंध में उपायुक्त के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन भी सौंपा।
जो यूनाइटेड ने ज्ञापन में कहा कि एक अलग प्रशासन की आवश्यकता है क्योंकि इंफाल, जिसमें प्रमुख सरकारी प्रतिष्ठान, शैक्षणिक संस्थान, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं और राज्य का एकमात्र हवाई अड्डा है, कुकी-जो समुदाय के लोगों के लिए दुर्गम हो गया है।
आंदोलनकारियों के मुताबिक मई में राज्य में जातीय संघर्ष शुरू होने और इंफाल घाटी से कुकी-जो समुदाय के निष्कासन के बाद से ही यह सभी सुविधाएं सरकारी अधिकारियों, जनजातीय समुदाय के विधायकों समेत लोगों के लिए दुर्गम हो गई हैं। ज्ञापन में संसाधन आवंटन को लेकर दावा किया गया कि 2017-18 और 2020-21 के बीच पहाड़ियों के लिए केवल 419 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जबकि इस अवधि के दौरान घाटी के लिए 21,481 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि मेइती समुदाय के लोगों द्वारा राजमार्गों को अवरुद्ध किया जा रहा है, जिससे पहाड़ी इलाकों पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है। कुकी-जो लोगों के संगठन ने पुलिस सहित राज्य सरकार पर मेइती समुदाय के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया।
ज्ञापन में कुकी-जो समुदाय के छात्रों के खिलाफ भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा गया कि सरकारी भर्ती के मामलों में समुदाय के लिए समान व्यवहार की संभावनाएं धूमिल हो रही हैं। जो यूनाइटेड के संयोजक अल्बर्ट रेंथली ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले केंद्र को एक और ज्ञापन सौंपा गया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला था। अल्बर्ट रेंथली ने कहा, ‘‘ कुकी-जो समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन जरूरी है क्योंकि तीन मई से हमारे खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं... अब हम मेइती समुदाय के साथ केवल अच्छे पड़ोसियों के रूप में रह सकते हैं।’’
आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) के नेतृत्व में कांगपोकपी जिले में भी रैलियां निकाली गईं। इसके अलावा मिजोरम की सीमा से सटे फिरजॉल जिले में भी रैलियां निकाली गयीं। इसी तरह की रैलियां टेंग्नौपाल, सैकुल और जम्पुइटलांग तथा दिल्ली, अगरतला, बेंगलुरु और चेन्नई में भी निकाली गईं। मणिपुर में तीन मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से सितंबर में कुछ दिनों को छोड़कर, मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
राज्य में मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद जातीय हिंसा भड़क गई थी, जिसमें अब तक 180 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
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