श्रमिकों से सबसे पहले मिलने वाले बचावकर्मी ने बताया, उन्होंने हमें कंधों पर उठा लिया और गले लगाया

श्रमिकों से सबसे पहले मिलने वाले बचावकर्मी ने बताया, उन्होंने हमें कंधों पर उठा लिया और गले लगाया

उत्तरकाशी।‘रैट होल खनन’ तकनीक के विशेषज्ञ फिरोज कुरैशी और मोनू कुमार मलबे के आखिरी हिस्से को साफ कर उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों से मिलने वाले पहले व्यक्ति थे। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाए गए 17 दिनों के व्यापक अभियान के बाद मंगलवार शाम को सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। 

दिल्ली निवासी कुरैशी और उत्तर प्रदेश के कुमार ‘रैट-होल खनन’ तकनीक विशेषज्ञों की 12 सदस्यीय टीम का हिस्सा थे, जिन्हें रविवार को मलबे को साफ करने के दौरान अमेरिकी ‘ऑगर’ मशीन को समस्याओं का सामना करने के बाद खुदाई के लिए बुलाया गया था। दिल्ली के खजूरी खास के रहने वाले कुरैशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘जब हम मलबे के आखिरी हिस्से तक पहुंचे तो वे (मजदूर) हमें सुन सकते थे। मलबा हटाने के तुरंत बाद हम दूसरी तरफ उतर गए।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘मजदूरों ने शुक्रिया अदा किया और मुझे गले लगा लिया। उन्होंने मुझे अपने कंधों पर भी उठा लिया।’’ कुरैशी ने कहा कि उन्हें मजदूरों से कहीं ज्यादा खुशी हो रही थी। कुरैशी दिल्ली स्थित रॉकवेल एंटरप्राइजेज के कर्मचारी हैं और सुरंग बनाने के काम में विशेषज्ञ हैं। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी कुमार ने कहा, ‘‘उन्होंने (मजदूरों ने) मुझे बादाम दिए और मेरा नाम पूछा। इसके बाद हमारे अन्य सहकर्मी भी हमारे साथ जुड़ गए और हम लगभग आधे घंटे तक वहां रहे।’’ 

उन्होंने कहा कि उनके बाद राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के कर्मी सुरंग के भीतर गए। कुमार ने कहा, ‘‘एनडीआरएफ कर्मियों के आने के बाद ही हम वापस आये।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें बहुत खुशी है कि हम इस ऐतिहासिक अभियान का हिस्सा बने।’’ रॉकवेल एंटरप्राइजेज की 12 सदस्यीय टीम के प्रमुख वकील हसन ने कहा कि चार दिन पहले बचाव अभियान में शामिल एक कंपनी ने उनसे मदद के लिए संपर्क किया था। 

हसन ने कहा, ‘‘मलबे से ‘ऑगर’ मशीन के हिस्से को हटाते समय काम में देरी हो गई। हमने सोमवार को दोपहर तीन बजे काम शुरू किया और मंगलवार शाम छह बजे काम खत्म किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा था कि काम 24 से 36 घंटे में खत्म हो जाएगा और हमने वही किया।’’ उन्होंने यह भी कहा कि बचाव अभियान में भाग लेने के लिए उन्होंने कोई पैसा नहीं लिया। 

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