लखनऊ: SGPGI के प्रोफेसर राजन सक्सेना बोले, कहा- सेवाभाव की कमी चिकित्सा पेशे को बना रही 'धंधा'

वीरेंद्र पाण्डेय, लखनऊ, अमृत विचार। चिकित्सकों को धरती का भगवान कहा जाता है, लेकिन यह सम्मान पाने के लिए एक चिकित्सक को हर कदम पर खतरा उठाना पड़ता है। कोरोना काल में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जहां पर चिकित्सकों ने अपनी जान की बाजी लगाकर कोरोना संक्रमित मरीजों को इलाज दिया है। यह वह दौर था जब अपने ही अपनों के पास नहीं आ रहे थे। ऐसा नहीं है कि केवल कोरोना काल में ही चिकित्सकों को खतरा उठाना पड़ा हो।
मरीज का इलाज करते समय एक चिकित्सक को हमेशा संक्रमण का खतरा बना रहता है, जिससे उनकी जिंदगी पर हमेशा संकट के बादल मंडराया करते हैं, लेकिन लोगों की जिंदगी बचाने का जुनून, मानवीय मूल्य और सेवा भाव की इच्छा के चलते एक डाक्टर अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर मरीजों को जीवन की आशा देते हैं।
लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राजन सक्सेना ऐसे ही चिकित्सकों में शामिल है। पद्मश्री प्रोफेसर राजन सक्सेना मानते हैं कि मरीज का इलाज पवित्र काम है। सेवा भाव की कमी इस पेशे को भी पैसे का धंधा बना देती है। वह कहते हैं कि मरीज और समाज की सेवा करना चाहते हैं तो ही इस में क्षेत्र में आना चाहिए। प्रोफेसर राजन सक्सेना को साल 2004 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
एसजीपीजीआई में लिवर ट्रांसप्लांट की शुरुआत करने वाले प्रोफेसर राजन सक्सेना ने साल 1987 में लिवर प्रत्यारोपण का सपना देखा था। जिसको उन्होंने पूरा भी किया। अब तक एसजीपीजीआई में 23 लिवर प्रत्यारोपण हो चुके हैं। साल 2018 में एसजीपीजीआई परिसर में लिवर प्रत्यारोपण के लिए एक विशेष केंद्र की स्थापना की गई। जिसका नाम सेंटर ऑफ हेपेटोबिलरी डिजीज और ट्रांसप्लांटेशन है। वह इस केंद्र के प्रमुख भी हैं। जहां पर लिवर ट्रांसप्लांट साल 2022 में हुआ था।
उसके बाद अभी तक लिवर ट्रांसप्लांट नहीं हो सका है। इस बात की जानकारी प्रोफेसर राजन सक्सेना ने अमृत विचार के संवाददाता वीरेंद्र पाण्डेय से हुई बातचीत के दौरान दी। इतना ही नहीं उन्होंने इस मौके पर जीवन के अनेक पहलू तथा आने वाले समय में लिवर प्रत्यारोपण करने के बारे में भी बताया है। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...
आपका जन्म कहां हुआ, स्कूली शिक्षा के बारे में बताएं?
प्रो.राजन : मेरा जन्म लखनऊ में हुआ, पिता प्रोफेसर महेन्द्र नाथ सक्सेना पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में प्रोफेसर के पद पर तैनात थे। मैने वहीं पर स्कूली शिक्षा प्राप्त की, उसके बाद साल 1981 में पटियाला मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की।
आपने चिकित्सा के क्षेत्र में कब पदार्पण किया और सेवा की शुरुआत कहां से की?
प्रो.राजन : साल 1982 में पीजीआई चंडीगढ़ में कार्यरत था। यहां पर ही सर्जरी की ट्रेनिंग ली यानी की एमएस की पढ़ाई चंडीगढ़ पीजीआई से ही की। उसके बाद साल 1988 के दिसंबर में लखनऊ पीजीआई आ गया और यहां पर सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की स्थापना की।
चिकित्सा के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली ?
प्रो.राजन : मैं एक फाइटर पॉयलट बनना चाहता था, दो बार एनडीए क्वालीफाई भी किया। साल 1976 में आर्म्स फोर्सेस मेडिकल कॉलेज में चयन भी हुआ, लेकिन घर का इकलौता लड़का होने के कारण जाने की इजाजत नहीं मिली। यही वजह थी कि एमबीबीएस करने पटियाला चला गया और वहीं पर एमबीबीएस की पढ़ाई करते- करते फ्लाइंग क्लब पायलट की ट्रेनिंग ली। उसके बाद सर्जरी की पढ़ाई की। उन्होंने बताया कि एक सर्जन और एक पॉयलट में बहुत समानता है। इसलिए मन में था कि सर्जन ही बनना है।
अपना मार्गदर्शक किसे मानते हैं ?
प्रो.राजन : जब मैं पटियाला मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा था, उस समय कम्यूनिटी मेडिसिन के हेड रहे प्रो.हरिचरण सिंह और सर्जरी विभाग के हेड प्रो.अजमेर सिंह ने एक चिकित्सक बनने में जो मार्गदर्शन किया था। उसकी वजह से आज इस मुकाम तक पहुंच सका हूं।
कोई खास सर्जरी रही हो, उसके बारे में बतायें ?
प्रो. राजन : लिवर प्रत्यारोपण का सपना साल 1987 में देखा था। 1988 में लखनऊ एसजीपीजीआई आने के बाद साल 1993 में लिवर प्रत्यारोपण सीखने के लिए इग्लैंड चला गया। वहां से साल 1994 में वापस आने के बाद साल 2000 में पहला लिवर प्रत्यारोपण जिसमें एक जीवित अंगदाता का लिवर एक पांच साल के बच्चे में प्रत्यारोपित किया गया था।
मां ने अपने बच्चे को लिवर का एक हिस्सा दिया था। आज वह बच्चा 24 साल का है और इंजीनियर है। इसके अलावा साल 2009 में मेरा खुद का लिवर प्रत्यारोपण हुआ। इसके पीछे की वजह साल 1983 में एक मरीज की सर्जरी थी, जब मैं उसकी सर्जरी कर रहा था, उस दौरान मुझे हेपेटाइटिस बी का संक्रमण हो गया था।
एसजीपीजीआई में लिवर प्रत्यारोपण अभी क्यों नहीं हो रहा है ?
प्रो.राजन : एसजीपीजीआई में अभी तक 23 लिवर प्रत्यारोपण हुआ है। अंग प्रत्यारोपण की सुविधा और बेहतर हो सके, लोगों को इसका लाभ मिले। इसके लिए ही साल 2018 में एसजीपीजीआई में सेंटर ऑफ हेपेटोबिलरी डिजीज और ट्रांसप्लांटेशन की स्थापना की गई।
यहां पर एक लिवर प्रत्यारोपण भी हुआ,लेकिन टीम पूरी न होने के कारण लिवर प्रत्यारोपण का कार्य नहीं हो पा रहा है। किसी व्यक्ति का जीवन बहुत महत्वपूर्ण होता है, ऐसे में जीवन का खतरा नहीं लिया जा सकता। टीम पूरी होते ही एक बार फिर कार्य शुरू कर दिया जायेगा।
नई पीढ़ी के चिकित्सकों के लिए खास सलाह ?
प्रो. राजन : एक मरीज का इलाज पवित्र काम है। ऐसे में मरीज और समाज की सेवा करना चाहते हैं, तभी इस पेशे में आयें। इसे धंधा न बनायें।
चिकित्सा क्षेत्र में भी तेजी के साथ बदलाव हो रहा है, ऐसे में कोई ऐसी चीज जो आपको उचित न प्रतीत होती हो ?
प्रो. राजन : आज के समय में चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या इसका बाजारीकरण होना है। जिसकी वजह से इस क्षेत्र में भी गिरावट आ रही है।
यह भी पढ़ें: लखनऊ: तेज रफ्तार की शर्त ने ली ASP के मासूम बेटे की जान, कार से कुचलने वाले आरोपितों ने बयां की पूरी घटना