Chhath Puja 2023: कब हुई थी छठ पूजा की शुरुआत? जानें इससे जूड़ी मान्यताएं, रहस्य और खास जानकारी
बरेली, अमृत विचार। छठ पूजा जोकि यूपी-बिहार का सबसे बड़े त्योहारों में से एक है जो इस बार 17 नवंबर शुक्रवार से शुरु हुई है और 20 नवंबर तक बड़े ही धुम- धाम से मनाया जाएया। इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी मईया की पूजा- उपासना विधि- विधान के साथ की जाती है। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत व त्योहार में जो आस्था रखते है वह सभी लोग पूरे साल इस दिन का इंतजार बड़े ही बेसब्री से इंतजार किया करते है। इस पर्व से जुड़ी धार्मिक मान्यता है कि छठ का व्रत संतान प्रात्ति की कामना, संतान की कुशलता, सुख- समूद्धि और दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे तक उपवास रखती है।
छठ पूजा से जूड़ी मान्यता
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्रौपदी और पांडव अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने और अपने मुद्दों को हल करने के लिए छठ पूजा का व्रत रखा था। एक अन्य मान्यता के अनुसार कर्ण, जो भगवान सूर्य और कुंती के पुत्र थे, वे भी छठ पूजा करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने महाभारत काल में जल में घंटों खड़े होकर सूर्य देव की उपासना किया करते थे। छठ पूजा के दौरान भक्त अर्घ्य देते हैं और भगवान सूर्य और छठी मैया से प्रार्थना करते हैं कि वे अपना आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके साथ ही अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों की समृद्धि और कल्याण के लिए सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। भगवान सूर्य की पूजा करते समय, भक्त ऋग्वेद के मंत्रों का भी जाप करते हैं। यह भी कहा जाता है कि वैदिक युग के ऋषि सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए स्वयं को सीधे सूर्य के प्रकाश में उजागर करके छठ पूजा करते थे।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य और छठी मैया से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महिलाएं 36 घंटे तक उपवास रखती हैं। छठ के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। भक्त गंगा नदी जैसे पवित्र जल में स्नान करते हैं, छठ का पालन करने वाली महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान सूर्य के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। दूसरे और तीसरे दिन को खरना और छठ पूजा कहा जाता है। महिलाएं इन दिनों एक कठिन निर्जला व्रत रखती हैं। इसके साथ ही चौथे दिन (उषा अर्घ्य) महिलाएं पानी में खड़े होकर उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर अपना 36 घंटे का उपवास तोड़ती हैं।
छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्ध्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्ध्य दान की यहीं परंपरा प्रचलित है।
जानिएं छठ मैया की पूजा की वजह
कालांतर में छठी मैया के आशीर्वाद से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। आदित्य भगवान ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर देवताओं को असुरों पर विजयश्री दिलाई थी। कालांतर से पुत्र प्रात्ति के लिए छठ पूजा की जाती है।
छठ मैया की पूजा से मिलते है कई लाभ
छठ पर्व पर सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को अधिक लाभ मिलता है। इस पर्व के दौरान नियमित तौर से सूर्य को जल देने से घर के सभी दोष दूर होते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
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