बरेली: दीपावली से पहले चमका मिट्टी के दीयों का कारोबार, कुम्हारों को अच्छी आमदनी की उम्मीद

बरेली: दीपावली से पहले चमका मिट्टी के दीयों का कारोबार, कुम्हारों को अच्छी आमदनी की उम्मीद

बरेली, अमृत विचार। करवा चौथ और दीपों का उत्सव दीपावली आ चुकी है। इसको लेकर मिट्टी के बर्तन बनाने में कुम्हार पिछले काफी दिनों से तैयारियों में जुटे हुए हैं। जो अब तक बड़ी संख्या में दीए, कुल्हैया, करवा, मटकी समेत मिट्टी के तमाम बर्तन बना चुके हैं। कुम्हारी कला से जुड़े कारीगरों को इस बार त्योहारों में मिट्टी के बर्तनों की अच्छी बिक्री की उम्मीद है, क्योंकि अभी से अच्छी खपत होने लगी है। 

मौजूदा ट्रेंड में डिजाइनर दीये पहली पसंद
इस बार दीयों पर महंगाई देखने को मिल रही है। कलर दीये सादा दीयों से महंगे दामों पर बिक रहे हैं। वहीं सरकार के आह्वान के बाद इस बार त्योहारों पर स्थानीय उत्पादों की खरीदारी होने से कुम्हारों को लाभ होने का अनुमान है। पिछले सालों की अपेक्षा इस बार लोग दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने पर ज्यादा फोक्स कर रहे हैं। यही वजह है कि बदलते ट्रेंड में लोग डिजाइनर दीयों को खूब पसंद कर रहे हैं।

दिवाली पर मिट्टी के दीये जलाना सदियों पुरानी परंपरा
दरअसल, भारतवर्ष में दीपावली का त्योहार सनातन संस्कृति से जुड़े सभी परिवारों में मनाया जाता है। ऐसे में हर घर में दीपावली पूजन के दौरान मिट्टी के दीये जलाने की सदियों पुरानी परंपरा है। जिसके चलते दीयों की हिंदू समाज में बहुत बड़ी संख्या में जरूरत पड़ती है। यही वजह है कि दीपावली से करीब एक महीना पहले ही विश्वकर्मा पूजा से कुम्हार मिट्टी के दीए बनाना शुरू कर देते हैं।

डिजाइन के अनुसार दीयों के दाम 
शहर में पीलीभीत रोड पर यूनिवर्सिटी के पास, गांधी उद्यान के सामने, कालीबाड़ी, बांके की छावनी, बानखाना, कोहड़ापीर समेत कई स्थानों पर मिट्टी के दीपक, कुल्हैया, करवा जैसे तमाम चीजें बनाने का काम चल रहा है। अगर हम बात करें दामों की तो बाजार में सादा छोटे दीये 80-120 रुपए सैकड़ा और सादा बड़े दीये 100 से 200 रुपये सैकड़ा बिक रहे हैं। वहीं छोटे कलर दीये 100-140 रुपये सैकड़ा तो हैंडल कलर दीया 20 से 40 रुपये का एक और डिजाइनर बड़े दीये की 20-25 रुपये के हिसाब से बिक्री हो रही है। 

अब मिट्टी के बर्तन और खिलौने बने फैशनेबल
शहर में कई पीढ़ियों से बर्तन बनाने का काम करने वाले कारीगर बताते हैं कि उन्हें कुम्हारी कला विरासत में मिली है। पहले इस काम से न सिर्फ फायदा था, बल्कि इनका परिवार इसी से चलता था। लेकिन बाजार में चाइनजीन खिलौने, दीये और लाइट्स जैसे तमाम आइटम आ जाने से चकाचौंध में जनता अपने ही देश की माटी को भूल-सी गई थी, और मिट्टी के बर्तनों से मुंह मोड़ लिया था। यही वजह थी कि मिट्टी के खिलौनों की जगह इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने ले ली। 

खिलौनों में घरेलू चकिया, घरौंदे, गुड्डा-गुड़िया
अब बाजार में पहुंचने वाले ग्राहकों को मिट्टी के खिलौनों में घरेलू चकिया, घरौंदे, गुड्डा-गुड़िया, गुल्लक और छोटे बच्चों के बर्तन खूब भा रहे हैं। जो अपने बच्चों के लिए बड़े ही शौक से खरीदते हैं। वहीं दीपावली के लिए मिट्टी की वस्तुओं में समय के साथ काफी तकनीकी और डिजाइन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे अब करवाचौथ और दीपावली जैसे त्योहारों पर मिट्टी के दीये और करवा की जमकर बिक्री हो रही है।

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स्वदेसी की अलख से मिट्टी कला को जीवनदान
मीडिया और सोशल मीडिया पर चले स्वदेसी अभियान ने तीज-त्योहारों पर एक बार फिर स्थानीय वस्तुओं को तवज्जो दी है। इस बीच सरकार ने लोकल फॉर वोकल स्कीम के तहत कुम्हारों को तकनीकि से जोड़ने का प्रयास किया है, जिससे उन्हें मिट्टी के बर्तन बनाने वाला इलेक्ट्रिक चाक और लोन उपलब्ध कराने जैसी तमाम कार्यक्रम चलाए हैं। जिससे मिट्टी के बर्तनों की बाजार में रौनक लौटी है। 

कुम्हारों को अच्छी आमदनी की उम्मीद
कुम्हारी कला के कारीगर ओम प्रकाश बताते हैं कि देश की जनता जागरूक हो गई है, जिसकी वजह से हमारे तीज-त्योहारों पर स्वदेशी वस्तुओं की खरीदारी होने लगी है। यही वजह है कि अब लोग चकाचौंध करते चाइनीज आइट्म से किनारे करने लगे हैं। जिससे स्थानीय और देसी वस्तुओं पर ध्यान देने की वजह से उनके मिट्टी के दीये, कुल्हैया समेत तमाम चीजों की जमकर बिक्री होगी।

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