यूपी पुलिस को झटका : हाईकोर्ट ने कहा- वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक डॉक्टर और उसके साथियों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट और पुलिस चौकी पर उन्हें अवैध रूप से बंधक बनाने के आरोप में उत्तर प्रदेश के चार पुलिस अधिकारियों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि आवेदक पुलिस अधिकारी हैं, इससे उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी। पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं है। 

कोर्ट ने लोक सेवकों की सुरक्षा के लिए बनी सीआरपीसी की धारा 197 को स्पष्ट करते हुए कहा कि लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्यों के दायरे से बाहर आने वाले कृत्यों के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है । सीआरपीसी की धारा 197  का उद्देश्य है कि कार्य निर्वहन के दौरान जिम्मेदार लोक सेवकों को उनके द्वारा कथित रूप से किए गए अपराधों के लिए संभवतः झूठी या तंग करने वाली आपराधिक कार्यवाही से संरक्षण प्रदान किया जाए। 

वर्तमान मामले में कोर्ट ने शिकायतकर्ता का कथन सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दर्ज उसके बयान से समर्थित पाया। सीआरपीसी की धारा 202 के तहत गवाहों के बयानों से आरोपों की पुष्टि होती है और घायल व्यक्तियों की चिकित्सा जांच रिपोर्ट से भी आरोपों की पुष्टि होती है। अंत में कोर्ट ने कथित कृत्य को याचियों के आधिकारिक कर्तव्य निर्वहन के दायरे से बाहर पाते हुए उनके खिलाफ अभियोजन चलाने में किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता महसूस नहीं की। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की एकलपीठ ने अनिमेष कुमार और 3 अन्य की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। 

आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं  के तहत पुलिस स्टेशन कोतवाली फर्रुखाबाद में मुकदमा दर्ज किया गया था। मामले के अनुसार 28 जून 2022 को जब पेशे से डॉक्टर शिकायतकर्ता अपने साथियों के साथ कानपुर से फर्रुखाबाद लौट रहे थे, तो उनकी कार दुर्घटनावश याचियों के वाहन से टकरा गई, जो कन्नौज में एसओजी में तैनात पुलिस अधिकारी थे। इसके बाद आरोपी पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता की कार को रोक लिया, फिर उसके और उसके साथियों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की। कथित तौर पर उन्होंने डॉक्टर का मोबाइल फोन क्षतिग्रस्त कर उनकी सोने की चेन और नकदी छीन ली और उन्हें जबरन पुलिस चौकी ले गए, जहाँ उन्हें लगभग डेढ़ घंटे तक हिरासत में रखा गया। इस संदर्भ में जनवरी 2024 में पारित समन आदेश सहित पूरी कार्यवाही को चुनौती देते हुए आरोपी पुलिस अधिकारियों ने हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की, जिसमें तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए उनकी गाड़ी से टकरा गये। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने शिकायतकर्ता को केवल चेतावनी दी थी, लेकिन शिकायतकर्ता ने बदले में उनके खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करा दी। उनका यह भी तर्क था कि उन पर सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी प्राप्त किए बिना मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि कथित घटना के समय याची पुलिस अधिकारी गश्त ड्यूटी पर थे, जबकि कोर्ट ने मामले में तथ्यों और आरोपों की जांच की तो पाया कि घटना के समय याची कथित घटना स्थल पर गश्त ड्यूटी पर नहीं थे और हमले और डकैती के कथित कृत्य का याचियों के आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के साथ कोई उचित या तर्कसंगत संबंध नहीं था।

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