हल्द्वानी: आपातकाल से पहले शुरू हुई कवायद, मोदी काल में मिली स्वीकृति, हल्द्वानी को मिलेगा प्रतिवर्ष 42 एमसीएम पेयजल 

हल्द्वानी: आपातकाल से पहले शुरू हुई कवायद, मोदी काल में मिली स्वीकृति, हल्द्वानी को मिलेगा प्रतिवर्ष 42 एमसीएम पेयजल 

हल्द्वानी, अमृत विचार। जमरानी बांध परियोजना को पीएमकेएसवाई के अंतर्गत भारत सरकार की कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी है। परियोजना पर 48 साल बाद स्वीकृति मिली है। शहर की बढ़ रही बसावट को देखते हुए जमरानी परियोजना का निर्माण होना जरूरी है।

जमरानी परियोजना की कवायद साल 1975 में आपात काल से पहले शुरू हुई थी। इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री थीं तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का अंग था और हेमवती नंदन बहुगुणा राज्य के सीएम थे। परियोजना की कवायद साल 1977 में लगे आपातकाल से पहले ही शुरू हो गई थी और अब पीएम मोदी के समय परियोजना को स्वीकृति मिली है। इस दौरान देश ने करीब 21 सीएम और 10 पीएम का कार्यकाल देख लिए हैं।

परियोजना से लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा। साथ ही हल्द्वानी को हर साल 42 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर्स) पेयजल उपलब्ध कराए जाने और 63 मिलियन यूनिट जल विद्युत उत्पादन होगा। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत जमरानी बांध परियोजना के वित्त पोषण के लिए निवेश स्वीकृति और जल शक्ति मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी की ओर से स्वीकृति प्रदान की गई थी।

इसके बाद भारत सरकार के पीआईबी  (पब्लिक इनवेस्टमेंट बोर्ड)  को वित्तीय स्वीकृति के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा प्रस्ताव भेजा गया। बीते 3 मार्च को पीआईबी की बैठक में सहमति बनी। इसमें भारत सरकार की ओर से 1730.20 करोड़ रुपये की स्वीकृति पीएमकेएसवाई में 90 प्रतिशत केंद्र का अंश तथा 10 प्रतिशत राज्य के अंश के अंतर्गत प्रदान किया जाना प्रस्तावित है।

शेष धनराशि का वहन संयुक्त रूप से उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एमओयू के अनुसार किया जाएगा। जमरानी बांध परियोजना से प्रभावित 351.55 हेक्टेयर वन भूमि सिंचाई विभाग को हस्तांतरित कर दी गई है। प्रभावितों के परिवारों की पुर्नविस्थापित करने के लिए पहले ही प्रार्ग फार्म में जमीन चिन्हित कर ली गई है।


पुर्नवास व बांध से संबंधित अन्य काम होंगे समानांतर तरीके से
जमरानी बांध के प्रोजेक्ट मैनेजर अजय पंत ने बताया कि कैबिनेट से स्वीकृति मिलने के बाद बांध से संबंधित सभी काम समानांतर रूप से किए जाएंगे। प्रभावितों के पुर्नवास के साथ ही बांध का निर्माण भी शुरू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट के अंतर्गत 40 किमी. लंबी कैनाल बनाई जाएगी।

जिससे उत्तराखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश को भी पानी मिलेगा। बताया कि ऊधमसिंहनगर के हरिपुरा में जलाशय है, वहां से बरेली को पानी जाएगा। प्रोजेक्ट के अंतर्गत स्टेज-1 में कई कैनाल का निर्माण हुआ है जिसमें कई कैनाल या तो छोटी हैं या क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। जिनको बड़ी व ठीक किया जाएगा। अजय ने बताया कि प्रोजेक्ट के लिए जल्द ही टेंडर निकाले जाएंगे।  

2018 के बाद हुई ठंडे बस्ते में पड़ी योजना में दोबारा कार्यवाही शुरू
2018 से पहले यह योजना ठंडे बस्ते में पड़ी थी। जमरानी के महाप्रबंधक प्रशांत विश्नोई ने इस पर कार्यवाही शुरू की। इसके लिए एसआईए सोशल इंपैक्ट एसेसमेंट का गठन किया गया। बांध के लिए वन विभाग से एनओसी मांगी गई। एनओसी मिलने पर प्रभावितों के पुर्नवास के लिए किच्छा के प्राग फार्म में भूमि मिली।

वन भूमि सिंचाई विभाग को हस्तांतरित करने हेतु वन भूमि (स्टेज-2 ) अंतिम स्वीकृति केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जनवरी में प्रदान कर दी है। जिससे प्रस्तावित बांध निर्माण की राह और आसान होगी तथा परियोजना प्रभावित परिवारों के विस्थापन हेतु प्राग फार्म की प्रस्तावित 300.5 एकड भूमि का प्रस्ताव बीते 18 मई को प्रदेश सरकार की कैबिनेट में पारित किया जा चुका है।