अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष : पिता की मौत के बाद अपनों के तानों से विचलित नहीं हुईं दीपा

संघर्षों से भरा है दीपा त्यागी व उनकी तीन बहनों का जीवन, पढ़-लिखकर बढ़ाया माता-पिता का मान

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष : पिता की मौत के बाद अपनों के तानों से विचलित नहीं हुईं दीपा

निर्मल पांडेय, मुरादाबाद, अमृत विचार। 18 सितंबर 2008 को बीमारी से पिता की मौत हो गई। चारों बेटियां अविवाहित थीं। बेटा बहनों में सबसे छोटा था। पति की मौत के बाद सुनीता के सामने तमाम सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया था। खैर, उन्होंने अपने को संभाला और बच्चों को आगे बढ़ने में कोई चुनौती आड़े नहीं आने दी। उधर, अपनों के तानों की फिक्र छोड़ बेटियों ने भी तय कर लिया कि उन्हें समाज की मिथ्या सोच से निकलकर आगे बढ़ना है। बेटियों ने मां को समझाते हुए पढ़ाई पर ध्यान दिया। अपनी पढ़ाई संग ट्यूशन पढ़ाकर बेटियों ने जो मुकाम हासिल किया, उसे अब आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार उदाहरण के तौर पर रख रहे हैं।

 हम बात कर रहे हैं महिला थानाध्यक्ष दीपा त्यागी की। वह चार बहनों में तीसरे नंबर की हैं और गणित से एमएससी हैं जबकि, बड़ी बहन गुंजन रसायन विज्ञान से एमएससी हैं। दरोगा पिता महेश चंद्र त्यागी की जगह दीपा ने मृतक आश्रित में पुलिस विभाग में 2012 में ज्वाइन किया था। इस समय इंस्पेक्टर हैं और मई 2022 से महिला थाने में सेवाएं दे रही हैं। दीपा त्यागी मूल रूप से ग्रेटर नोएडा के मकसूदपुर गांव की रहने वाली हैं। उनकी और बहनों की पढ़ाई-लिखाई बुलंदशहर में रहकर हुई। बुलंदशहर में वह माता-पिता व भाई-बहन संग देवीपुरा-द्वितीय में रहती थीं। 

वह बताती हैं कि पापा के गुजरने के दौरान उनका भाई शिवम आठ साल का था और दीपा उस समय डीएवी डिग्री कॉलेज से बीएससी कर रही थीं। बड़ी बहन गुंजन की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। गुंजन की शादी के लिए पिता लड़का देख रहे थे। उसे बुलंदशहर के ही ललिता प्रसाद इंटर कॉलेज में जॉब भी मिल गई थी। 

पिता की असमय मृत्यु से मां समेत पूरा परिवार टूट सा गया था। लेकिन, मां (सुनीता देवी) ने अपने संग बच्चों को संभाला। पिता के न रहने पर समाज और अपनों से ताने मिल रहे थे, उन्हें यादकर दीपा की आंखें भर आती हैं। मां के रहते हुए तीन बहनों गुंजन, प्रिया व दीपा की शादी हो गई थी। 2016 में उनकी मां भी गुजर गईं। अब घर में छोटी बहन पूजा व भाई शिवम बचे थे। इस बीच इनकी तीनों बड़ी बहनों ने अपनी छोटी बहन और भाई को कभी अकेले नहीं छोड़ा। 

दीपा और उनकी दोनों बड़ी बहनों ने मिलकर छोटी बहन पूजा की शादी की और भाई शिवम को वह मुंबई से एमबीबीएस करा रही हैं। दीपा अपनी और बहनों की कामयाबी पर बेहद खुश हैं। 

बताती हैं कि उनकी दूसरे नंबर की बहन प्रिया ने एमसीए कर रखा है। वह पति संग बिजनेस में व्यस्त है। छोटी बहन पूजा एमबीए है, वह बुलंदशहर में पढ़ाती हैं। इन सभी ने बेसिक पढ़ाई ललिता प्रसाद इंटर कॉलेज में ही की है, जबकि स्नातक व परास्नातक डीएवी डिग्री कॉलेज से किया है। दीपा की दो बेटियां नव्या व नित्या हैं। पति हरीश त्यागी हेड कांस्टेबल हैं।

पिता की मौत से एक दिन पहले आई थी किस्मत
दीपा बताती हैं कि हाईस्कूल से लेकर बीएसएसी तक की परीक्षा में वह प्रथम ही रहीं। वह वैज्ञानिक बनना चाहती थीं। मुंबई भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में जाने के लिए आवेदन किया था। पिता की मृत्यु के एक दिन पहले परीक्षा का प्रवेश पत्र प्राप्त हुआ था, इन्हें 20 सितंबर 2008 के दिन परीक्षा देने को इलाहाबाद (प्रयागराज) के विद्यालय केंद्र पर जाना था। लेकिन, उससे पहले 18 सितंबर को पिता की मृत्यु हो गई थी।

17 माह में 1306 दंपतियों में कराई सुलह
महिला थाना प्रभारी दीपा ने तैनाती के 17 महीने में 1306 बिछड़े दंपतियों का दोबारा घर बसवाने में अहम भूमिका निभाई है। पति-पत्नी दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर उन्हें समझाया है। सामाजिक ताना-बाना बताया। जरूरत पड़ी तो सख्ती भी दिखाई। कुल मिलाकर छोटी-छोटी बातों को लेकर अलग हुए पति-पत्नी को दीपा त्यागी ने फिर से उन्हें दांपत्य जीवन के सूत्र में पिरोया है।

बेटा-बेटी में फर्क नहीं मानते थे पापा
दीपा त्यागी बताती हैं कि पापा हम सभी बहनों को बेटा ही बोलते थे। वह बेटा-बेटी में कभी कोई फर्क नहीं करते थे। पापा कहते थे कि हम अपनी बेटियों से दूसरे की रोटियां (गृहणी) नहीं बनवाएंगे, उन्हें पढ़ाएंगे और आगे बढ़ाएंगे, ताकि जरूरत पर पैसे के लिए उनकी बेटियों को किसी दूसरे के आगे हाथ न फैलाना पड़े। पापा को जो पगार मिलती वह उन लोगों की पढ़ाई में लगाते थे।

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