विश्व व्यापार का आधार

विश्व के शक्तिशाली देश भी भारत के नेतृत्व का लोहा मान रहे हैं। हाल ही में संपन्न जी-20 सम्मेलन में भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा बनाने का सुझाव दिया गया। साथ ही भारत ने अफ्रीकी संघ को जी20 में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल कराया। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उम्मीद जताई कि ये गलियारा आने वाले सैकड़ों वर्षों तक विश्व व्यापार का आधार बनने जा रहा है।
सवाल उठता है कि आखिर इस आर्थिक गलियारे की जरूरत क्या थी? विशेषज्ञों की मानें तो चीन ने 2013 में बेल्ट एंड रोड पहल शुरू की। चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का भारत ने विरोध किया। क्योंकि इसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा शामिल है, जो चीन के काशगर को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के माध्यम से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है।
उसका उद्देश्य प्राचीन व्यापार मार्गों को पुनर्जीवित करना है। चीन ने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए विभिन्न देशों को कर्ज दिया और चीनी कंपनियों को काम के लिए अनुबंध दिए गए। इससे चीन को वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ने में मदद मिली,पर चीन की कर्जनीति की पश्चिमी देशों में जमकर आलोचना भी हुई।
2019 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उसकी कर्ज नीति से अर्थव्यवस्थाओं के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि इन देशों की सार्वजिनक संपत्तियों को चीन को ही सौंपा जा सकता है। कहा जा सकता है भारत-पश्चिम एशिया-यूरोपीय आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) चीन के विवादास्पद बेल्ट एंड रोड परियोजना से मुकाबले के लिए भारत को पश्चिम एशिया एवं यूरोप से जोड़ने की परियोजना है।
आईएमईसी को इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) पर अपने घाटे को कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए एक कदम के रूप में भी देखा जा सकता है। आईएमईसी में दो अलग-अलग गलियारे होंगे। पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा जबकि उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा।
इसमें रेल मार्ग को भी शामिल किया गया है जो मौजूदा समुद्री एवं सड़क परिवहन मार्गों के पूरक के तौर पर भरोसेमंद सीमापार परिवहन के लिए जहाज-रेल ट्रांजिट नेटवर्क उपलब्ध कराएगा। इसके जरिये परिवहन लागत भी अपेक्षाकृत कम होगी। इससे भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल एवं यूरोप के बीच वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित होगी।
कूटनीतिक कारण जो भी हों, मगर उद्योग के विशेषज्ञों एवं विश्लेषकों का मानना है कि भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच स्थापित होने वाला यह गलियारा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश एवं कारोबारी अवसरों पर जबरदस्त प्रभाव डालेगा।