रायबरेली: न डिग्री न मान्यता, खोल दी जिंदगी लेने की दुकान, नगर और ग्रामीण क्षेत्र में झोलाछापों की भरमार

रायबरेली: न डिग्री न मान्यता, खोल दी जिंदगी लेने की दुकान, नगर और ग्रामीण क्षेत्र में झोलाछापों की भरमार

रायबरेली/रोहनिया/ऊंचाहार, अमृत विचार। क्षेत्र में झोलाछोप का संजाल इस कदर फैला है कि आए-दिन किसी न किसी घर से रोने-कलपने की आवाज सुनाई पड़ती है। बिना किसी डिग्री और मान्यता के झोलाछापों ने मौत की दुकान खोल रखी है और लोग सीएचसी-पीएचसी होने के बाद भी इनके पास जाकर न केवल धन लुटवाते बल्कि अपनों की जिंदगी से भी हाथ धो बैठते हैं। 

वहीं चिकित्सा विभाग के जिम्मेदार है कि जो सब कुछ जानते हैं लेकिन झोलाछापों पर कार्रवाई करने कि हिम्मत नहीं कर सके हैं। अलबत्ता अपना नाकामी छिपाने के लिए जानकारी न होने का बहाना बनाया जाता है। क्षेत्र में जगह-जगह चौराहों व गलियों पर झोलाछाप की भरमार है। ना कोई डिग्री ना कोई डिप्लोमा है। 

इन क्वेक को किसी बात का डर नहीं है। यह न कार्रवाई से डरते हैं न ही लोगों से। इनकी दुकान सुबह से लेकर रात कर खुली रहती है जो मरीजों के लिए डेड चैंबर सरीखा होता है। इन झोलाछापों के पास हर मर्ज की दवा का दावा रहता है। ऑपरेशन से लेकर प्रसव तक यह करते हैं। यही नहीं यह न्यूरो, किड़नी और हृदय रोग तक का इलाज करने का दंभ भरकर ग्रामीणों को न केवल लूटते हैं बल्कि जिंदगियों से खिलवड़ा करते हैं।

अभी हाल ही में रायबरेली के एक हॉस्पिटल में एक नवजात शिशु की हाथ में इंजेक्शन लगाने से नवजात का हाथ काटना पड़ गया था और उसके बाद उसी मौत हो गई थी। जिसकी जांच अभी तक चल रही है। वहीं दूसरी घटना रायबरेली ऊंचाहार प्रतापगढ़ बॉर्डर पर संचालित हो रहे अभय दीप हॉस्पिटल में एक प्रसूता की इन्हीं झोलाछाप डॉक्टरों की लापरवाही से जान चली गई थी। झोलाछाप ग्रामीण क्षेत्र से लेकर के नगर क्षेत्र तक डेरा जमाए हैं। भैसासुर सवैया, सवैया राजे, रायपुर उमरन व हटवा में झोलाछाप प्रमुख रूप से विद्यामान हैं।

सुबह ठीक 9 बजे दुकान का शटर खुल जाता है और फिर शुरू होती है मरीजों की गिनती और उनका इलाज। फोड़ा, फुंसी के साथ बुखार, यूरिन संक्रमण, चेस्ट संक्रमण, चक्कर आना, मिर्गी का दौरा पड़ना, पाइल्स, कैंसर, हिस्ट्रीरिया, मानसिक रोग, मधुमेह सहित जितने भी असाध्य रोग हैं उनका इलाज झोलाछाप अपनी लाल, पीली, नीली गोली और इंजेक्शन से करते हैं।
ऑपरेशन के औजारों की नहीं होती सफाई

इनके पास ऑपरेशन के मेडिकल औजार भी हैं। जिनकी मशीन से सफाई नहीं होती बल्कि पानी से उन्हें धो दिया जाता है जिससे सेप्टिक का खतरा हमेशा बना रहता है। अधिकतर मामलों में सेप्टिसीमिया से ही मरीज की जान जाती है। यदि किसी मरीज की जान चली जाती है तो यह दुकान बंद कर भाग जाते हैं। मामला ठंडा होने के बाद यह फिर से दुकान खोलकर सामने आ जाते हैं।

बिहार, बंगाल और ओड़िसा के लोगों का कब्जा

झोलाछाप की बाजार में बिहार, बंगाल और ओड़िसा के लोगों का कब्जा है। गांवों में अधिकतर झोलाछाप इन्हीं राज्यों से संपर्क रखते हैं। वह कमाई के लिए गांवों में आकर बस गए हैं। 30 साल पहले उनके पूर्वज बंगाली डाक्टर के नाम से गांवों में छाए थे जिसका पूरा लाभ इनके द्वारा लिया जा रहा है। कभी कोई चेकिंग नहीं होती है जिस कारण व्यापार फलफूल रहा है।
100 से लेकर 200 रुपये तक फीस

झोलाछापों का हाल यह है कि इनकी क्लीनिक पर 100 से 200 रुपये की फीस ली जाती है। यदि ऑपरेशन करना है तो फिर उसका अलग से चार्ज है। जितना बड़ा रोग होगा उतनी अधिक कीमत ली जाती है। प्रसव के लिए यह 30 से 40 हजार रुपये तक लेते हैं। चेस्क संक्रमण में यह 20 से 30 हजार रुपये तक लेते हैं।

क्या कहते जिम्मेदार
गांवों में झोलाछाप कहां हैं इसकी जानकारी नहीं है। यदि कोई लिखित जानकारी देता है तो फिर कार्रवाई की जाएगी..., एम के शर्मा, रोहनिया सीएचसी अधीक्ष।