उत्तराखंड: अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में है मौजूद, यहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं

उत्तराखंड: अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में है मौजूद, यहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं

उत्तराखंड, अमृत विचार। ब्यानधुरा मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित एक प्राचीन एवम् लोकप्रिय मंदिर है, जो की धनुष बाण की तरह एक नजर आता है। यह मंदिर जंगल के बीचों-बीच में पहाड़ी की चोटी पर नैनीताल और चम्पावत की सीमा में रोड से लगभग 35 किमी की दुरी पर ब्यानधुरा नामक क्षेत्र पर स्थित है।

यह ऐड़ी देवता का मंदिर है एवं मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है। कालान्तर में राजा ऐड़ी लोक देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं। राजा ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे और उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में भी माना जाता है। इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान-सभा भी माना जाता है। इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता हैं कि राजा ऐड़ी ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तप के बल से राजा ने देव्तत्व को प्राप्त किया था एवं महाभारत काल से ही ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे इस क्षेत्र में अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने अपना ठिकाना(निवासस्थल) बनाया था और अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष भी इसी स्थान पर किसी एक चोटी के पत्थर के निचे छिपाया था।

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ऐसा भी कहा जाता हैं कि अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में मौजूद है और सिर्फ ऐड़ी देव के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं। महाभारत काल के अलावा इस क्षेत्र में मुगल और हुणकाल में बहारी आक्रमणकारियों का दौर रहा लेकिन यह आक्रमणकारी ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से चोटी से आगे पहाड़ो की ओर नहीं बढ़ सके। 

पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में मनोकामना पूर्ण करने के लिए छत्र , ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन ब्यानधुरा एक ऐसा शक्तिस्थल है , जहां धनुष बाण चढ़ाए और पूजे जाते हैं । ब्यानधुरा मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह एडी देवता का मंदिर एक काफी प्राचीन और पौराणिक मंदिर है। ब्यानधुरा मंदिर में ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-बाण तो चढ़ाये जाते ही हैं , वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है।

मंदिर समिति के पूजारियों के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढे़र में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है । इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की धुनी है , जो कि लगातार जलती है और गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है , जिसके समक्ष जागर आयोजित होते हैं। ब्यानधुरा मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में तराई क्षेत्र से लेकर पूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग मंदिर में विराजित ऐड़ी और अन्य देवता की पूजा करने आते हैं।

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ब्यानधुरा मंदिर के बारे में यह मान्यता हैं कि मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है और मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में गाय दान और ऐड़ी देवता को प्रसन्न करने के लिए धनुष-बाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र भेंट करते हैं। मंदिर में मकर संक्रांति के दिन के अलावा चैत्र नवरात्र , माघी पूर्णमासी को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।