लखनऊ : आपातकाल का वो दौर जब महज तीन घंटे में अबे से मान्यवर बने यह वरिष्ठ नेता
लखनऊ, अमृत विचार। बात 1977 की है जब देश में आपातकाल लगा था और आम चुनाव होने के बाद मतगणना हो रही थी। जेलों में बंद विपक्ष के नेताओं को इस बात का इंतजार था कि कांग्रेस पार्टी चुनाव हारेगी, इन्दिरा गांधी की सरकार जायेगी और हम आजाद होंगे। यह कहना है आपातकाल के समय मीसा बंदी के तौर पर जेल में उत्पीड़न झेलने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित का।
हृदयनारायण दीक्षित ने बताया कि जिस दिन मतगणना होनी थी, उस दिन एक साथी की मदद से जेल के अंदर रेडियो मंगाया था, रात के समय बैरक के अंदर उसी रेडियो पर मतगणना के परिणाम सुन रहे थे। सब तरफ से कांग्रेस के हारने की सूचना आ रही थी। इसी बीच डिप्टी जेलर निरीक्षण के लिए बैरक के पास पहुंच गये और उन्होंने रेडियो की आवाज सुन ली,लेकिन तब तक मैने रेडियो बंद कर छुपा दिया था। तब डिप्टी जेलर ने कहा कि रेडियो बजा रहे हो और मैने कहा नहीं, उस दौरान डिप्टी जेलर ने अभद्रता करते हुये कहा कि अबे अभी तलाशी लूंगा और डंडा... यह कह कर चले गये, लेकिन करीब तीन घंटे बाद सुबह चार बजे जब कांग्रेस के पराजय की खबर आ गई। उसके बाद वही डिप्टी जेलर दोबारा आये और बधाई दी कहा सर अब आपकी सरकार बन रही है। इस तरह का व्यवहार हुआ करता था उस समय के अफसरों का।
इन्दिरा ने इस तरह किया उत्पीड़न
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने बताया कि 48 साल पहले आज ही के दिन यानी 25 जून 1975 को आपातकाल लगाकर इन्दिरा गांधी ने पूरे देश में हर तरफ कैद खाने जैसी स्थिति पैदा कर दी थी। मीसा बंदी के रूप में बंद लोगों का उत्पीड़न जारी था। उस समय को याद करना काफी दुखदायी महसूस होता है, लेकिन लोकतंत्र के लिए आपातकाल और उस समय के उत्पीड़न को याद करना आवश्यक है।
हृदयनारायण दीक्षित की माने तो उस समय देश में किसी प्रकार आतंरिक समस्या नहीं थी, महज अपनी तानाशाही सोंच के चलते पूरे देश को आपातकाल के अंधेरे में झोंक दिया गया। उन्होंने बताया कि इन्दिरा गांधी हिटलर का अनुसरण कर रही थीं, क्योंकि हिटलर ने भी साल 1933 के समय जर्मनी में आपातकाल की व्यवस्था दी थी। दरअसल हुआ यह कि साल 1975 में 12 जून को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी के संसदीय चुनाव को अवैध कराद दे दिया। जिसके कारण विपक्ष इन्दिरा गांधी से त्यागपत्र मांगने लगा। जबकि इन्दिरा गांधी पद से हटना नहीं चाहती थीं, इसके लिए संविधान संसोधन तक हुये और देश पर आपातकाल लगा दिया गया। देश में आपातकाल लगते हीं नेता जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी समेत बहुत से नेता, पत्रकारों को जेल भेज दिया गया। प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अखबारों में सामान्य समाचार छपा करते थे, पुलिस राज और उत्पीड़न की खबरे गायब थीं। उत्पीड़न की खबर छापने पर उन्हें भी जेल में जाना पड़ता। आपातकाल के समय लाखों लोग जेल में थे।
डर के चलते बढ़ाई गई चुनाव की तारीखें
हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि सरकार के इशारे पर सरकारी अत्याचारों से देश के लोगों में आक्रोश पैदा हो चुका था। हालात इतने खराब थे कि पुलिस राज कायम था और हृदयविदारक घटनायें हो रहीं थी। जो लोगों के बर्दाश्त के बाहर थीं । यह बात इन्दिरा सरकार को भी बता थी। इसी वजह से डरी सरकार ने 1976 में प्रस्तावित आम चुनाव को 1977 में कराया। इस चुनाव में इंदिरा गांधी स्वयं रायबरेली से चुनाव हार गईं। कांग्रेस को बुरी तरह से हरा कर जनता ने सबक सिखा दिया था।
यह भी पढ़ें : आपातकाल की बरसी पर बोले सीएम योगी- Emergency के दौरान तानाशाही का विरोध करने वालों को नमन