प्रयागराज : विवाहोपरांत जीवनसाथी को यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता
अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानसिक क्रूरता के आधार पर दंपति के बीच विवाह को यह कहते हुए भंग कर दिया कि पति या पत्नी द्वारा लंबे समय तक बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने साथी को यौन संबंध बनाने की अनुमति ना देना मानसिक क्रूरता के बराबर है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार (चतुर्थ) की खंडपीठ ने रविंद्र प्रताप (पति) द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका खारिज करने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। मामले के अनुसार दंपति का विवाह मई 1970 में हुआ था। विवाह के कुछ समय बाद पत्नी के आचरण में परिवर्तन आने लगा और वह स्वेच्छा से अपने मायके जाकर रहने लगी।
अपीलकर्ता का दावा है कि शादी के 6 महीने बाद उसने अपनी पत्नी (आशा देवी) को वैवाहिक जीवन के दायित्व का निर्वहन करने और वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए घर वापस आने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन पत्नी ने वापस आने से इंकार कर दिया। इसके बाद जुलाई 1994 में गांव की एक पंचायत के सामने सामुदायिक रीति-रिवाजों के अनुसार 22000 रूपए गुजारा भत्ता देने की शर्त पर दंपति का तलाक हो गया। इसके बाद पति ने दूसरी शादी कर ली और जब पति ने क्रूर मानसिकता, लंबी परित्याग अवधि और तलाक के समझौते के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी तो वह अदालत में पेश नहीं हुई। अतः परिवार न्यायालय ने एकपक्षीय कार्यवाही का मामला मानकर मौजूदा मामले को खारिज कर दिया।
आक्षेपित आदेश से व्यथित होकर पति ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि परिवार न्यायालय ने अति तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हुए अपीलकर्ता के मामले को खारिज कर दिया था। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के आलोक में कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को एकतरफा और दोषी करार देते हुए याची की अपील स्वीकार कर ली।
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