Moradabad Nagar Nigam Chunav 2023 : महापौर पद पर खिलेगा कमल या कसेगा पंजे का शिकंजा, साइकिल की रफ्तार और हाथी की चाल भी कसौटी पर
प्रत्याशियों के दावे में कितना है दम, बताएगा ईवीएम
विनोद श्रीवास्तव, अमृत विचार। नगर निगम के महापौर पद का ताज किसके सिर पर सजेगा इसका जनादेश आज (शनिवार) आएगा। इस पर विनोद अग्रवाल की हैट्रिक से फिर कमल खिलेगा या पंजे के शिकंजे में कमल फंसेगा इसका निर्णय होने में अब सिर्फ गिनती के घंटे रह गए हैं। कयामत की यह रात किसी की करवट बदलते बीती तो कोई अपने मतगणना एजेंटों से पूरी रात मंत्रणा में जुटा रहा।
अब तक पीतलनगरी में दो बार सपा प्रत्याशी और चार बार भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कर महापौर की कुर्सी को सुशोभित किया। भाजपा की बात करें तो विनोद अग्रवाल और उनकी पत्नी बीना अग्रवाल ने ही अब तक भाजपा की लाज बचाई या यूं कहें कि भाजपा नेतृत्व के भरोसे पर खरे उतरे। इस बार हैट्रिक का दांव भाजपा ने फिर विनोद अग्रवाल पर खेला है।
नगर निगम के महापौर पद पर इस बार भाजपा की बड़ी जीत इसलिए और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का गृह जनपद है। खुद मुख्यमंत्री ने एक मई को लाइनपार के रामलीला मैदान में खराब मौसम के बीच आकर महापौर सहित अन्य प्रत्याशियों के पक्ष में जनसभा कर मतदाताओं से जीत का आशीर्वाद मांगा था। उन्होंने केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के साथ ही पीतलनगरी में किए गए विकास कार्यों की दुहाई देकर पार्टी प्रत्याशियों को जीत देने की जनता से मनुहार की थी।
सबसे अधिक बार भाजपा को मिली महापौर की कुर्सी
भारतीय जनता पार्टी की बीना अग्रवाल ने 2000 और 2012 में महापौर पद पर जीत दर्ज की थी। जबकि उनके पति विनोद अग्रवाल ने भाजपा के सिंबल पर 2016 के उप चुनाव और 2017 में पूर्ण चुनाव में जीत दर्ज कर कमल खिलाया था। 1995 से अब तक हुए छह चुनाव में से सबसे पहले 1995 में सपा के हुमायूं कदीर और 2006 में सपा के ही डॉ. एसटी हसन ने अनारक्षित सीट पर जीत दर्ज की थी।
कम मतदान का टेंशन
जीत हार का गणित कम मतदान के भंवर में फंसा है। चार मई को हुए मतदान में नगर निगम क्षेत्र में सिर्फ 45.32 फीसदी मतदान ने प्रत्याशियों को बेचैन किया है।
सट्टेबाजों की भी खुलेगी पोल
चुनावी शोर में सट्टेबाजों ने भी बहती गंगा में खूब हाथ धोया। प्रत्याशियों की जीत-हार पर खूब शर्त लगी। मतगणना के आखिरी वक्त तक शर्त लगी। इसमें सबसे अधिक दांव भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी पर लगा।
कांग्रेस, बसपा या अन्य दल को जीत की दरकार
अब तक महापौर पद पर हुए छह चुनाव में से एक बार भी यह कुर्सी कांग्रेस, बसपा या अन्य किसी राजनीतिक दल के पास नहीं रही। ऐसे में यह दल आज भी निराशा के दौर से गुजर कर कुछ नया करने की आस लगाए हैं।
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