कूटनीतिक सहयोगी खोने के कगार पर ताइवान, अब भी वैधता की खोज जारी

कूटनीतिक सहयोगी खोने के कगार पर ताइवान, अब भी वैधता की खोज जारी

मेलबर्न। एक और कूटनीतिक सहयोगी खोने के कगार पर बैठा ताइवान अब भी अपनी विनम्र शक्ति से दोस्तों का दिल जीत रहा है तथा अन्य देशों को प्रभावित कर रहा है। कई देशों के लिए ‘एक चीन’ की अवधारणा दूर का एक कूटनीतिक रुख है जिसे अकेला छोड़ना ही सही है। वहीं, ताइवान के लिए यह अस्तित्व का खतरा है। यह खतरा पिछले हफ्ते की तुलना में कभी इतना स्पष्ट नहीं रहा जब दुनिया की सबसे बड़ी चीनी नौसेना ने छोटे-से द्वीपीय देश को घेरने के अभ्यास किए जो ताइपे में स्वतंत्रता समर्थक नेताओं के लिए ‘‘गंभीर चेतावनी’’ थी। 

चीन उत्तर प्रशांत तथा उसके परे अपनी मौजूदगी तथा प्रभाव बढ़ा रहा है जबकि ताइवान की सहयोगियों की सूची सिकुड़ती जा रही है। ताइवान के अभी महज 13 देशों से आधिकारिक कूटनीति संबंध हैं और वह पिछले सात वर्ष में नौ सहयोगी खो चुका है। पराग्वे में चुनाव नतीजे लंबित रहने के साथ इस महीने वह एक और सहयोगी खो सकता है। वह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है। कोई भी न्यूयॉर्क या जिनेवा में पहचान के लिए ताइवान का पासपोर्ट दिखा कर संयुक्त राष्ट्र की इमारतों में नहीं घुस सकता। गठबंधनों से देशों को आक्रामक और रक्षात्मक सैन्य कार्रवाइयों में मदद मिलती है।

 लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे साझा हितों के आधार पर एक साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं। ताइवान के लिए गठबंधनों का मतलब उसकी वैधता को मान्यता देना है क्योंकि चीन ‘एक चीन’ की नीति के तहत ताइवान पर अपना दावा जताता है। ताइवान 1949 से स्वतंत्र रूप से शासित है लेकिन बीजिंग ने बार-बार दावा किया है कि वह इस द्वीप का ‘‘एकीकरण’’ करेगा, भले ही इसके लिए बल प्रयोग क्यों न करना पड़े। 

मार्टिन में टेनेसी विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर अदनान रसूल के अनुसार, हमेशा से यह माना जाता रहा है कि चीन, ताइवान के औपचारिक सहयोगियों को पाला बदलने के लिए राजी कर लेगा। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए ताइवान को अपने संबंध बरकरार रखने के दूसरे तरीके आजमाने की आवश्यकता है।’’ ताइवान की विदेश नीति ‘‘चतुर कूटनीति’’ के रूप में पारंपरिक कूटनीतिक संबंधों से परे हैं।

 उदाहरण के लिए साई इंग-वेन के कार्यकाल में ताइवान का डिजिटल और सोशल मीडिया का उपयोग करना चीन में भारी सेंसर वाले वैश्विक मीडिया मंचों के बिल्कुल विपरीत है। प्रोफेसर रॉन्सले के अनुसार, राष्ट्रपति साई के कार्यकाल में ताइवान की ‘साउथबाउंड पॉलिसी’ का विस्तार क्षेत्र में साझा मूल्यों को मजबूत करने के लिए आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जोर को दिखाता है और ताइवान के प्रभाव को बढ़ाता है। एक विनम्र शक्ति के रूप में ताइवान की लोकतांत्रिक स्थिति उसे चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सरकार की छवि के बिल्कुल विपरीत खड़ा करती है। ताइवान के एक और संभावित सहयोगी को गंवाने की आशंका के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के प्रयासों और सैन्य प्रदर्शन के बावजूद आने वाले समय में ताइवान के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव में कोई बदलाव आने की संभावना नहीं है।

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