बरेली: रामचरित मानस को आचरण में उतारना बहुत जरूरी- कुमार विश्वास

बरेली: रामचरित मानस को आचरण में उतारना बहुत जरूरी- कुमार विश्वास

बरेली, अमृत विचार। सौंदर्य मनुष्य के आकार या आकृति से नहीं, उसके मन और मस्तिष्क में होना चाहिए। राजा दशरथ के राम, सीता, लक्ष्मण सहित पूरे परिवार का अंत तक एक सूत्र में बंधे रहना वर्तमान के लिए सबसे बड़ा उदाहरण है। जहां बेटे- बेटी नौकरी पाने के बाद अपना अलग घर बना कर गृहस्थी बनाने के लिए व्याकुल रहते हैं, बाकी परिवार के भाई, चाचा, ताऊ आदि सगे संबंधी भी खुद को कुछ समय बाद अलग कर लेते हैं।

सोमवार को शाहजहांपुर राेड स्थित इंटरनेशनल सिटी में श्रीराधारानी सेवा ट्रस्ट की ओर से आयोजित कार्यक्रम अपने-अपने राम के मंच से रामचरित मानस के प्रसंगों के माध्यम से कवि कुमार विश्वास ने चुटीले अंदाज में परिवार को एक सूत्र में बांधे रखने और राम की मर्यादा और आचरण को अपने जीवन में शामिल करने की सीख दी।

न्होंने कहा कि सबके राम अलग-अलग हैं। उनके राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जबकि कुछ लोगों के राम ऐसे हैं जो जय श्री राम के नारे के साथ किसी दूसरे पर हमलावर हो जाते हैं। शाम करीब 7.30 बजे शुरू हुए कार्यक्रम के दूसरे दिन बड़ी संख्या में कथा प्रेमियों से भरा पंडाल जय श्री राम के जयकारों से गूंजता रहा।

रामचरित मानस नहीं होगा तो घर-घर में महाभारत होना तय
कथा के दौरान रामचरित मानस की चौपाइयों के साथ विस्तृत वर्णन कर रहे कवि कुमार विश्वास ने कहा कि रामचरित मानस के आचरण को घर घर में उतारना चाहिए, नहीं तो गृहक्लेश, बाधाएं, आपसी झगड़े यानी महाभारत होना तय है। मानस जीवन को जीने की कला सिखाता है, आपसी रिश्ते और सामाजिक अनुशासन का महाकाव्य है।

वनवास काल के प्रसंग की चर्चा कर उन्होंने बताया कि श्री राम वन देवी से अयोध्या से वन में उनके स्थान तक कांटे, झाड़ियों का हटाने का निवेदन करते हैं। वन देवी श्री राम से सवाल कर पूछती हैं कि क्या अयोध्या का राजकुमार और राम का भाई इतना कमजोर है कि कांटे चुभने से उसे कष्ट होगा।

इस पर श्रीराम उत्तर देते हैं कि नहीं मेरे भरत को जरा भी कष्ट नहीं होगा, इन मामूली कांटों के चुभने से, बल्कि मेरा छोटा भाई जब यह देखेगा कि भईया और माता सीता इन कांटे भरे मार्ग से निकले हाेंगे तो उन्हें यह चुभे होंगे तो कितना कष्ट हुआ होगा। इस दौरान कवि कुमार विश्वास ने भरत व राम के भ्रातृत्व प्रेम, भरत की पत्नी मांडवी और लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की तपस्या का भी विस्तृत वर्णन किया।

पश्चिमी सभ्यता हो रही हावी
पिता, चाचा, भाई जैसे रिश्तों पर भी घिनौने आरोप लग रहे हैं, समय भले न बदला है, मगर सोच बहुत दूषित होती जा रही है। विदेशी शक्तियों की पूर्व रचित योजना के मुताबिक ऋषियों और मनीषियों के देश को खत्म किया जा रहा है। कहा कि इस परिवर्तन की बयार में सबसे अच्छा बदलाव रहा कि बहुओं को बेटियों का दर्जा मिलने लगा, जो पहले सास, ससुर और ज्येष्ठ से सीधे बात नही करती थींं, उन बहुओं को इस बदलाव ने अपनी बात रखने का अधिकार दिया है।

कहा कि राम ने बहुत से राज्य जीते, लेकिन अपना साम्राज्य नहीं बढ़ाया बल्कि जहां का राज्य जीता वहीं के लोगों को वह राज्य समर्पित कर दिया। उसी राज्य के किसी व्यक्ति का राजतिलक किया। सुग्रीव और विभीषण का उदाहरण सबके सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि रावण से हुए युद्ध में राजाओं का नहीं बल्कि आदिवासियों और पिछड़ों का सहयोग लिया। राम ने उन्हें ताकत दी, जिनका कोई नहीं था।

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