अल्मोड़ा: मौसम की बेरुखी - क्या करेगा अब कास्तकार, पेयजल संकट और वनाग्नि से निपटना भी मुश्किल 

अल्मोड़ा:  मौसम की बेरुखी  - क्या करेगा अब कास्तकार, पेयजल संकट और वनाग्नि से निपटना भी मुश्किल 

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा, अमृत विचार। मौसम की बेरुखी का सबसे अधिक असर इस बार रबी की फसल पर देखने को मिला है। पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से खेतों को नमी नहीं मिल पाई। जिस कारण रबी की फसल लगभग बर्बाद हो गई है, जिस कारण अभी से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं। 
 

कुमाऊं के चार जनपदों की बात करें तो यहां अल्मोड़ा में करीब 43 हजार, बागेश्वर में 15 हजार पांच सौ, पिथौरागढ़ में 27 हजार और चम्पावत में 10 हजार चार सौ हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है। इसके अलावा यहां के किसान जौ, चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी और आलू का उत्पादन भी करते हैं। अक्टूबर से शुरू होने वाली रबी की खेती अप्रैल तक की जाती है। लेकिन इस बार यहां दस अक्टूबर के बाद से बारिश ही नहीं हुई और रबी की फसलें उगने से पहले ही चौपट हो गई। रबी की फसलों के लिए यहां करीब 342 एमएम पानी की जरूरत होती है।

लेकिन इस बार यहां केवल 50-60 एमएम वर्षा से स्थिति बेहद विकट हो चुकी है जिस कारण यहां के किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंचना लाजिमी है। 

दरअसल मैदानी भू-भाग में 99 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है लेकिन पहाड़ी जिलों में आठ से दस प्रतिशत क्षेत्रफल ही सिंचित है जबकि शेष खेती पूर्ण रूप से वर्षा आधारित है। ऐसे में यहां के छोटी जोत के किसानों को सिंचाई की सुविधा न मिल पाने के कारण उनकी भूमि का अधिकांश हिस्सा बंजर हो गया है। विषम परिस्थितियों में जहां किसान खेती कर भी रहे थे, वहां इस बार मौसम की मार ने उनकी बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। कुमाऊं के इन चारों जिलों की बात करें तो इस बार करीब तीन लाख से अधिक किसान मौसम की इस मार का शिकार हो सकते हैं। 

पेयजल संकट और वनाग्नि से निपटना भी मुश्किल 
अल्मोड़ा। पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होना इस बार पर्वतीय जिलों के लिए कष्टकारी साबित हो सकता है। पर्वतीय जिलों को पेयजल मुहैया कराने वाली कोसी, रामगंगा, सरयू, काली, गोरी, सुयाल, विनोद जैसी नदियों के सहायक पेयजल स्रोत पूरी तरह सूख चुके हैं, जिससे तापमान थोड़ा और बढ़ते ही इन नदियों का जल स्तर कम हो सकता है। इससे पर्वतीय जिलों में पेयजल का हाहाकार भी मच सकता है। वहीं, फायर सीजन की शुरूआत में ही इन जिलों में जंगल आग से धधकने लगे हैं। भीषण गर्मी पड़ी तो जंगलों की यह आग और विकराल रूप लेगी, जिससे वन संपदा और जीवों को खासा नुकसान पहुंच सकता है। 

मौसम नहीं दे रहा पूरा साथ
अल्मोड़ा। मंगलवार की रात मौसम बदलने से अच्छी बारिश होने की संभावना बढ़ गई, लेकिन मौसम ने पूरी तरह से साथ नहीं दिया। आंधी और हल्की बारिश के बाद मौसम सामान्य हो गया। राहत की बात यह रही कि कोई नुकसान नहीं हुआ। 


मौसम ने इस बार करवट बदली है। रबी की फसलों के अनुरूप बारिश न होने के कारण उत्पादन पर इसका असर देखने को मिलेगा। कृषि विभाग ने सूखे के आकलन की तैयारी कर ली है। शीघ्र ही रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी।

-धनपत कुमार, मुख्य कृषि अधिकारी, अल्मोड़ा

जंगलों में वनाग्नि की घटनाएं फायर सीजन की शुरूआत में ही शुरू हो गई हैं। बारिश न हुई तो हालात बिगड़ सकते हैं इसलिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आग पर काबू पाने के लिए टीम तैनात की जा रही है। इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शिकारी भी एक्टिव रहते हैं। ऐसे में वहां सुरक्षा कर्मियों को भी तैनात किया जा रहा है ताकि संदिग्ध लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

-जीवन मोहन दगड़े, डीएफओ पिथौरागढ़