बरेली: पूस की रात में ठिठुरने को मजबूर लोग, अभी तक नहीं बने अस्थाई रैन बसेरे
बरेली, अमृत विचार। पूस माह की रातें सबसे ठंडी मानी जाती हैं, जिसको लेकर मशहूर लेखक व कहानीकार मुंशी प्रेमचंद ने पूस की रात को लेकर की किताब लिखी दी। किताब का नाम भी 'पूस की रात' रखा, जिसमें एक किरदार हल्कू व उसका कुत्ता किस तरह से खेत में पूस की रात गुजारते हैं। यही हाल इस समय शहर का है बाहर से आने वाले राहगीर किस तरह से बगैर अलाव व रैन बसेरे के पूस की रात गुजार रहे हैं।
नगर निगम की ओर से अस्थाई रैन बसेरे भी तैयार नहीं हुए हैं। स्थाई रैन बसेरों में अव्यवस्थाएं हावी हैं। नगर निगम के अधिकारी इसको लेकर कोई सुध नहीं ले रहे हैं। इससे बेघर और बेसहारा लोगों के लिए सर्द रातें काटना मुश्किल होता जा रहा है। अब तो शीत लहर भी शुरू हो गई है। बता दें कि हजियापुर में दो स्थाई रैन बसेरे बनाए गए हैं। दोनों की क्षमता करीब 80 लोगों को रखने की है।
अभी तक वहां ठंड से लोगों को बचाने के इंतजाम नहीं किए गए हैं। रैन बसेरे में लाइटें भी खराब हो गई हैं। इसके साथ ही पटेल चौक पर बने स्थाई रैन बसेरे की दीवार में दरार आने के बाद पटेल चौक से चौपुला चौराहे वाले रोड किनारे अस्थाई आश्रय गृह बनाया गया है। वहां लोगों के ठहरने को लगभग 15 तखत पड़े हुए हैं और रजाई गद्दों का कोई नामों निशान नहीं है।
वैसे अगर ज्यादा लोग आने लगते हैं तो तखत बढ़ा दिए जाते हैं। बाकरगंज के रैन बसेरे में भी लोगों को आश्रय नहीं मिल रहा है और बदायूं रोड पर पानी की टंकी के पास भी आश्रय गृह बना हुआ है। जहां पर 20 से लोगों की ही क्षमता है। सभी रैन बसेरों में करीब 30 लोगों के ठहरने की व्यवस्था की जाती है सेटेलाइट बस स्टैंड, डेलापीर मंडी गेट, चौपुला चौराहा, मथुरापुर सामुदायिक केंद्र और रेलवे जंक्शन पर भी लोगों के ठहरने के लिए भी अस्थाई रैन बसेरे की व्यवस्था की जाती है।