कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देश दुनिया को तेजी से बदल रहे: विदेश मंत्री एस जयशंकर

कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देश दुनिया को तेजी से बदल रहे: विदेश मंत्री एस जयशंकर

अबू धाबी/लंदन। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार देशों को शीघ्र कदम उठाने और वैश्विक तापपान को बढ़ने से रोकने की दिशा में काम करने की जरूरत है। अबू धाबी में जलवायु, वित्त और प्रौद्योगिकी विषय पर ‘इंडिया ग्लोबल फोरम यूएई समिट’ को संबोधित करते हुए जयशंकर ने जलवायु को लेकर बहस के दो हिस्सों के बीच फर्क का जिक्र किया। इसके तहत उन्होंने जलवायु कार्रवाई और हरित विकास के लिए क्षमता और दूसरा ‘‘कठिन’’ हिस्सा जलवायु न्याय को रेखांकित किया, जिसके लिए विकासशील दुनिया से किए गए वादों को पूरा करने की आवश्यकता है। 

जयशंकर ने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण है कि जो कार्बन स्पेस पर कब्जा कर रहे हैं, वे वादा करते रहे हैं कि वे दूसरों की मदद करेंगे और स्पष्ट रूप से उन्होंने दुनिया को तेजी से बदला है।’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘वे हर सीओपी (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) में कुछ नए तर्क, कुछ बहानेबाजी, कुछ ऐसी चीजें प्रस्तुत करते हैं जो मार्ग को बाधित करती रहती हैं। इसलिए, आज आप जिस वास्तविक समस्या का सामना कर रहे हैं, वह कई सीओपी में आ चुका है। विकसित देश अभी भी अपने वादों को निभाने के बारे में गंभीर नहीं हैं। निराशा बढ़ रही है क्योंकि दुनिया की स्थिति स्पष्ट रूप से बदतर होती जा रही है।’’

मंत्री ने ‘‘बड़े उत्सर्जक’’ जैसी पहचान के साथ देशों को लक्षित करने और भ्रमित करने के लिए कुछ जलवायु विमर्श की भी निंदा की। उन्होंने कहा, ‘‘उस देश में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन हो सकता है जो बाकी दुनिया का दसवां हिस्सा है। हालांकि, यह वह देश नहीं है जिसने कार्बन स्पेस पर कब्जा कर लिया। इसलिए कहीं न कहीं लोगों को इसके बारे में हकीकत जानने की जरूरत है और कहना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार हैं और क्या कदम उठाने चाहिए।’’

 संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति के कूटनीतिक सलाहकार डॉ अनवर मोहम्मद गर्गश के साथ बातचीत में जयशंकर ने दुनिया में दो बड़े विभाजनों पर भी प्रकाश डाला-एक यूक्रेन के आसपास केंद्रित पूर्व-पश्चिम विभाजन और दूसरा विकास के आसपास केंद्रित उत्तर-दक्षिण विभाजन। मंच को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘‘यूक्रेन का भी विकास पर प्रभाव पड़ रहा है। मेरा मानना है कि भारत अकेले नहीं बल्कि यूएई जैसे देशों के साथ इस अंतर को पाटने में भूमिका निभा सकता है। आज अंतर को पाटने की जरूरत है।’’

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