खड़गे ने संसद में जल्दबाजी में कानून पारित होने और बैठकों की संख्या कम होने पर जताई चिंता

खड़गे ने संसद में जल्दबाजी में कानून पारित होने और बैठकों की संख्या कम होने पर जताई चिंता

नई दिल्ली। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद में जल्दबाजी में कानून पारित किए जाने और संसद की बैठकों की संख्या कम होने के कारण समाज के वंचित वर्गों की समस्याओं को उठाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाने पर गहरी चिंता जतायी। साथ ही उन्होंने नये सभापति जगदीप धनखड़ से उम्मीद जतायी कि उनके नेतृत्व में सदन में पर्याप्त बैठकें होंगी। खड़गे ने बुधवार को उच्च सदन का पहली बार संचालन करने के लिए सभापति धनखड़ को बधाई देते हुए कहा कि राज्यसभा के संरक्षक के रूप में उनकी भूमिका अन्य भूमिकाओं की तुलना में बहुत बड़ी है।

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उन्होंने कहा कि वह जिस कुर्सी पर बैठे हैं वहां देश की कई महान हस्तियां बैठ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि उच्च सदन के छह सभापति बाद में राष्ट्रपति भी बने। उन्होंने सभापति धनखड़ को भूमिपुत्र बताते हुए कहा कि उन्हें विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री एवं राज्यपाल के रूप में विधायी कामकाज का लंबा अनुभव है। उन्होंने कहा कि एक समस्या यह है कि सदन की बैठकें कम होने के कारण जनता के मुद्दों पर चर्चा के लिए उचित समय नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा, गरीबों, एसटी, एसटी, दबे-कुचलों, किसानों, अत्याचार की शिकार महिलाओं के हालात पर ढंग से बात नहीं रख पाते।

 उन्होंने कहा कि विधेयक भी जल्दबाजी में पारित किये जाते हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहले जहां संसद 100 से अधिक दिन चलती थी वहीं अब यह 60-70 दिन से अधिक नहीं चलती। उन्होंने कहा कि यदि पिछले एक दशक के आंकड़े देखें तो सबसे अधिक 2012 में 74 बैठकें हुई थीं और इसके बाद 2016 में 72 बैठकें हुई थीं।

उन्होंने सभापति के समक्ष यह उम्मीद जतायी कि चर्चा के लिए दिन बढ़ाए जाएंगे। खड़गे ने कहा कि सभापति कानून के जानकार हैं और वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि यदि कानून को जल्दबाजी में पारित किया जाता है तो उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कानून की गुणवत्ता पर टीका टिप्पणी करते हैं।

उन्होंने कहा, यह हमारी संसदीय प्रणाली की सेहत और छवि के लिए ठीक नहीं लगता। उन्होंने कहा कि विधेयक पर ढंग से विचार करने के लिए उन्हें विभिन्न संसदीय समितियों के पास विचार के लिए भेजा जाना चाहिए। उन्होंने देश के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बयान का हवाला देते हुए कहा कि जल्दबाजी में कानून पारित करने से रोकने का काम राज्यसभा करती है। कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यसभा एवं लोकसभा मिलकर संसद बनती है और कोई अकेला सदन पूर्ण नहीं है।

उन्होंने कहा कि संसद के दोनों सदनों को अपने नियम एवं प्रक्रिया तय करने का संविधान ने अधिकार दिया है। उन्होंने कहा कि संविधान में राज्यसभा को विचारों का सदन कहा गया है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा ने भारतीय लोकतंत्र में संवाद की परंपरा को मजबूती दी है। उन्होंने कहा कि उच्च सदन में सभी यह चाहते हैं कि जनता के सवालों पर गंभीर चर्चा हो और समस्याओं का समाधान निकालें। उन्होंने कहा कि जिस तरह संसद दो सदनों से मिलकर बनती है उसकी तरह लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष के दो पहियों पर चलता है। 

उन्होंने कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर ने संसद की कार्यवाही को असरदार बनाने के लिए दोनों सदनों के लिए अलग सचिवालय बनाने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से राज्यसभा सदस्यों को लोक लेखा समिति और लोक उद्यम समितियों जैसी वित्तीय समितियों की सदस्यता मिली थी। खरगे ने कहा कि नेहरू ने कभी राज्यसभा के अधिकारों को कम नहीं होने दिया। 

उन्होंने इस बारे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री के एक वक्तव्य को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने कहा कि धन विधेयक को छोड़कर दोनों सदनों के अधिकारों में कोई अन्तर नहीं है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि विपक्ष के सदस्य भले ही संख्या में आज कम हों किंतु उनके अनुभवों एवं तर्कों में ताकत रहती है।

उन्होंने कहा, लेकिन दिक्कत यह है कि संख्या बल की गिनती होती है और विचारों पर विचार नहीं किया जाता। खरगे ने उच्च सदन में पूर्व में दिये गये अपने किसी बयान में पढ़े गये किसी शेर को लेकर उन पर कटाक्ष किए जाने का जिक्र किया और अपनी बात को इस शेर के साथ समाप्त किया...
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना गालिब
मेरा वक्त भी बदलेगा, तेरी राय भी बदलेगी। उन्होंन कहा कि उनके इस शेर का कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। 

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