रूस यात्रा के मायने
रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म कराने के लिए भारत प्रभावशाली स्थिति में है। रूस का रणनीतिक साझीदार होने के साथ रूस का पुराना दोस्त होने के अलावा विश्व राजनीति में बढ़ती हैसियत के बल पर भारत ने संघर्ष की समाप्ति की उम्मीद जगा दी है। इन उम्मीदों के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर दो दिवसीय रूस …
रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म कराने के लिए भारत प्रभावशाली स्थिति में है। रूस का रणनीतिक साझीदार होने के साथ रूस का पुराना दोस्त होने के अलावा विश्व राजनीति में बढ़ती हैसियत के बल पर भारत ने संघर्ष की समाप्ति की उम्मीद जगा दी है। इन उम्मीदों के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर दो दिवसीय रूस के दौरे पर हैं।
भारतीय विदेश मंत्री की मास्को यात्रा पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की नजरें टिकी हैं। उम्मीद की जा रही है कि यात्रा वैश्विक स्थिति के साथ-साथ विशिष्ट क्षेत्रीय चिंताओं को दूर करेगी। सवाल है दुनिया भारत से इस तरह की उम्मीद क्यों कर रही है। रूस के विदेश मंत्री से मिले एस जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन युद्ध भारत के लिए बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि कोविड, व्यापार की कठिनाइयों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डाला है। भारत और रूस तेजी से बहु-ध्रुवीय और असंतुलित दुनिया में एक साथ जुड़े हैं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुए अब 9 महीने होने जा रहे हैं। भारत ने रूस के यूक्रेन पर हमले की आलोचना नहीं की है।
हमेशा से ही दोनों पक्षों के बीच बातचीत का समर्थन किया है। जयशंकर पिछले वर्ष जुलाई में रूस के दौरे पर गए थे। इसके बाद अप्रैल में रूसी विदेश मंत्री लावरोल ने भारत का दौरा किया था। जयशंकर पूरी दुनिया में मौजूदा समय के माहिर कूटनीतिज्ञों में शुमार हैं।
क्यूबा मिसाइल संकट के बाद इस सबसे बड़े खतरे से अमेरिका अब तनाव में आ गया है और यूक्रेन की सरकार को चेतावनी दी है कि वे रूस के साथ बातचीत के लिए खुद को तैयार करें। भारत शुरू से इस युद्ध के खिलाफ रहा है। भारत का तर्क रहा है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।
अमेरिका व पश्चिमी देशों की उम्मीद बेवजह नहीं है। हाल में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। पुतिन ने अमेरिका व पश्चिमी देशों का नाम लिए बगैर कहा कि युद्ध के दौरान भारतीय नेतृत्व किसी के दबाव में नहीं आया है।
पुतिन ने जिस तरह से भारत और भारतीय नेतृत्व की प्रंशसा की है, उससे यह उम्मीद और बढ़ जाती है। ऐसे में अमेरिका व पश्चिमी देशों का यह विश्वास गहरा गया कि भारत इस जंग में शांतिदूत की भूमिका निभा सकता है। हालांकि भारत की यूक्रेन नीति की पश्चिमी देशों में पिछले दिनों आलोचना हुई थी लेकिन अब प्रशंसा होना काफी महत्वपूर्ण है।