स्मृति शेष: जब भूखे रहकर गांव वालों ने मुलायम सिंह यादव के लिए जुटाया था चंदा
इटवा। सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सोमवार को अंतिम सांस ली। उनके स्वस्थ होने के लिए लोग हवन कर रहे थे। भगवान से मन्नत मांग रहे थे। लेकिन नेता जी ने आखिरकार 82 साल की उम्र में आज दुनिया को अलविदा कह दिया। पीछे रह गई मुलायम …
इटवा। सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सोमवार को अंतिम सांस ली। उनके स्वस्थ होने के लिए लोग हवन कर रहे थे। भगवान से मन्नत मांग रहे थे। लेकिन नेता जी ने आखिरकार 82 साल की उम्र में आज दुनिया को अलविदा कह दिया। पीछे रह गई मुलायम सिंह यादव से जुड़ी यादें।
बात 1960 के दशक की है जब राममनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। जब भी उनकी रैली इटावा और आसपास के जिलो में होती, मुलायम सिंह उसमे जरूर शामिल होते। वह समय के साथ समाजवादी विचारधारा में रमने लगे। मुलायम सिंह आगे चलकर लोहिया जी की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बन चुके थे। वे गरीबों, किसानों और नौजवानों की बात करते और उनकी आवाज उठाते। मुलायम सिंह पढ़ाई, सियासत और राजनीति तीनों को एक साथ करने लगे।
1960 के दशक में राममनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। जब भी उनकी रैली इटावा और आसपास के जिलो में होती, मुलायम सिंह उसमे जरूर शामिल होते। वह समय के साथ समाजवादी विचारधारा में रमने लगे। मुलायम सिंह आगे चलकर लोहिया जी की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बन चुके थे। वे गरीबों, किसानों और नौजवानों की बात करते और उनकी आवाज उठाते। मुलायम सिंह पढ़ाई, सियासत और राजनीति तीनो को एक साथ करने लगे।
अब 1967 का चुनाव आ गया। उस समय तक जसवंत नगर के विधायक नत्थू सिंह से मुलायम सिंह के व्यक्तित्व व राजनीतिक कौशल के कायल हो चुके थे। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से जसवंतनगर से मुलायम सिंह को टिकट देने की अपील की। मुलायम सिंह को टिकट मिल भी गया। अब मुलायम सिंह जसवंतनगर विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। प्रचार करने के लिए उनके पास संसाधन के नाम पर केवल साइकिल थी। मुलायम सिंह के दोस्त दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम सिंह पीछे कैरियर पर बैठकर प्रचार के लिए गांव-गांव जाते।
पैसे नहीं थे। ऐसे में दोनो ने मिलकर “एक वोट ..एक नोट” नारा दिया। वे चंदे में एक रूपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटाने का वादा करते। कुछ पैसा इकठ्ठा हुआ उससे चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी अंबेसडर खरीदी। गाड़ी तो आ गई। अब मुश्किल यह थी कि तेल की व्यवस्था कैसे हो। मुलायम सिंह के घर बैठक हुई। बात उठी कि तेल भराने के लिए पैसा कहां से आएगा। गांव के ही बुजुर्ग सोनेलाल उठे और कहा कि गांव से कोई पहली बार विधायकी लड़ रहा है, हमे पैसे की कमी नही होने देनी है।
वह दौर अभावों का था। लेकिन गांव वालो के पास खेती-बारी और मवेशी थे। गांव वालो ने फैसला किया कि हम लोग हफ्ते में एक दिन एक वक्त का खाना खाएंगे। उससे जो अनाज बचेगा, उसे बेचकर अंबेसडर में तेल भराएंगे। इस तरह कार के तेल का इंतजाम लोगो ने उपवास रखकर किया। वह चुनाव मुलायम सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के शिष्य लाखन सिंह को हराकर मात्र 28 साल की उम्र में जीतकर प्रदेश के राजनीतिक दिग्गजो को चौका दिया। इसलिए नेताजी और उनका पूरा परिवार आज भी अपने गांव के लोगो के त्याग भावना का सम्मान करते है। उनके हर सुख दुःख को अपना सुख दुःख समझते है।
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