पीलीभीत: एक ऐसी रामलीला…जहां रावण के तीन पात्र त्याग चुके हैं प्राण

पीलीभीत: एक ऐसी रामलीला…जहां रावण के तीन पात्र त्याग चुके हैं प्राण

जितेंद्र गंगवार,बीसलपुर,अमृत विचार। पीलीभीत जिले की तहसील बीसलपुर की रामलीला भारत की अनूठी रामलीला भूमि है, जहां लीला के मैदान पर मंचन करते हुए तीन रावण कलाकारों ने ठीक उसी समय प्राण त्यागे जब प्रभु राम ने रावण संहार के लिए बाण चलाया था। ऐतिहासिक रामलीला अपने में कई ऐतिहासिक घटनाएं छिपाए हुए है। नगर …

जितेंद्र गंगवार,बीसलपुर,अमृत विचार। पीलीभीत जिले की तहसील बीसलपुर की रामलीला भारत की अनूठी रामलीला भूमि है, जहां लीला के मैदान पर मंचन करते हुए तीन रावण कलाकारों ने ठीक उसी समय प्राण त्यागे जब प्रभु राम ने रावण संहार के लिए बाण चलाया था। ऐतिहासिक रामलीला अपने में कई ऐतिहासिक घटनाएं छिपाए हुए है। नगर में होने वाली यह रामलीला 150 साल पुरानी बताई जाती है जो नगर को अपनी बरेली मंडल के अलावा पूरे देश में अलग पहचान दर्शाती है।

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यहां राम की लीलाओं का मंचन एक विशाल भूखंड पर किया जाता है। इस भूखंड पर अयोध्या नगरी, शिव कुटी, भरत कुटी, अशोक वाटिका, लंका के विशाल एवं भव्य भवन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन भवनों में प्राचीन काल की शिल्पकारी दूर से ही झलकती नजर आती है। बीसलपुर नगर में सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक रामलीला मेला खुन्नी लाल ने 20वीं सदी में प्रारंभ कराया था। महाभारत काल में ही पांडवों द्वारा भगवान शिव मंदिर गुलेश्वर नाथ की स्थापना की गई। इस मंदिर के पास ही मेले का आयोजन किया जाता है।

बीसलपुर रामलीला मेले की पहचान यहां के ऐतिहासिक घटनाओं से होती है। जो बरेली मंडल ही नहीं उत्तर प्रदेश के साथ ही पूरे भारत में अलग पहचान से जानी जाती है। रामलीला मेले की पावन भूमि पर राम और रावण दल के कलाकार निशुल्क लीला का मंचन प्रत्येक वर्ष करते हैं। रावण दल के तीन पात्र दशहरा महोत्सव की लीला का मंचन करते हुए ठीक उसी समय मृत्यु की चिर निंद्रा में सो गए जब प्रभु राम संहार करने के लिए बाढ़ चलाते हैं। 1962 में मुंशी छेदा लाल और 1978 में मोती महाराज रावण वध लीला का मंचन करते हुए स्वर्ग सिधार गए। दोनों पात्रों की मौत मेला मैदान में ऐतिहासिक घटनाओं के रूप में जानी जाने लगी।

इस घटना की पुनरावृति 1987 में पुनः हुई जब मोहल्ला दुर्गा प्रसाद निवासी गंगा भूषण रस्तोगी उर्फ कल्लू मल दशहरा महोत्सव लीला में प्रभु राम से संवाद करते हुए कह रहे थे… प्रभु राम मैंने अपने जीते जी तुम्हें अपनी लंका में प्रवेश कर नहीं करने दिया आज मैं तुम्हारे धाम जा रहा हूं रोक सको तो रोक लो शंकर भगवान की जय… उनके यह उद्गार ऐतिहासिक हो गए और जब उन्होंने हकीकत में प्राण त्याग दिए तो पूरा मेला मैदान आश्चर्यचकित हो गया। इस घटना से मेले की ख्याति काफी बढ़ गई। इस घटना के बाद से ही मेला मैदान में स्वर्गीय गंगा भूषण रस्तोगी उर्फ कल्लू मल की प्रतिमा को स्थापित किया गया है।

शनिवार को रावण वध लीला पर लगा अंकुश
रावण की भूमिका निभाने वाले गंगा भूषण उर्फ कल्लू मल का निधन शनिवार को रावण वध लीला वाले दिन हुआ था। उसी दिन के बाद से मेला कमेटी ने शनिवार को इस लीला का मंचन न कराने का निर्णय ले लिया। वर्ष 1987 के बाद से बीसलपुर में शनिवार को रावण नहीं मारा जाता है।

निस्वार्थ करते हैं लीलाओं का मंचन
रामलीला मेले में रावण व राम दल के पात्र निस्वार्थ लीला का मंचन करते हैं। मेला संपन्न हो जाने के बाद पात्र अपने अपने कार्यों में जुट जाते हैं। राम दिल के अधिकांश पात्र छात्र हुआ करते हैं जबकि रावण दल के पात्र निजी व्यवसाय करते हैं। रावण दल के पात्र पुश्तैनी चले आ रहे हैं जबकि राम दल के पात्र 2 या 3 वर्ष में बदल जाते हैं।

वर्ष 1980 से मैं तथा मेरे बड़े भाई महेश चंद्र अग्रवाल मेला कमेटी से जुड़कर व्यवस्थाओं की देखरेख करते चले आ रहे हैं। बचपन में मेला ग्राउंड में लीला देखने आया करते थे। उस समय रस्सी बांधकर मेला ग्राउंड में लीला का मंचन होता था। रात्रि में हांडी जलाकर रोशनी की जाती थी। लीला का मंचन देख कर काफी खुशी होती थी। मेले में आने वाले लोगों की सेवा के लिए जल भी पिलाया करता था। मेला कमेटी में प्रतिदिन निस्वार्थ भाव से व्यवस्थाओं की देखरेख कर रहा हूं। भगवान श्री राम की कृपा हमारे परिवार पर बनी हुई है।- सुरेश चंद्र अग्रवाल, व्यवस्थापक, मेला कमेटी।

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