हल्द्वानी: सुहागन होकर भी विधवा रही..पति ने मौत पर भी मुखाग्नि न दी

हल्द्वानी: सुहागन होकर भी विधवा रही..पति ने मौत पर भी मुखाग्नि न दी

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी। पैरों में न साया कोई सर पे न सांई रे, मेरे साथ जाए न मेरी परछाई रे…. शहर की एक ऐसी हृदय विदारक घटना जिसने भी सुनी उसका यही कहना था कि घोर कलियुग आ गया..शादी, प्यार वफ़ा, कसमें और रस्में अब सब झूठी प्रतीत होती हैं, यहां सारे रिश्ते झूठ, फरेब, …

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी। पैरों में न साया कोई सर पे न सांई रे, मेरे साथ जाए न मेरी परछाई रे…. शहर की एक ऐसी हृदय विदारक घटना जिसने भी सुनी उसका यही कहना था कि घोर कलियुग आ गया..शादी, प्यार वफ़ा, कसमें और रस्में अब सब झूठी प्रतीत होती हैं, यहां सारे रिश्ते झूठ, फरेब, लालच और स्वार्थ सिद्धि के लिए ही टीके हैं।

मामला गणपति विहार फेज 2 का है जहां वर्ष 2002 में अलका की नई जिंदगी की शुरुआत हुई, बेटी साक्षी को लेकर अपने पति सुधीर के साथ अपने नए घर मे प्रवेश किया, यहां उसने अपनी जिंदगी के हसीन पल संजोए। इस बीच एक बेटे वैभव को जन्म दिया। जिंदगी बड़े प्यार से कट रही थी लेकिन शायद अलका के गृहस्थी को किसी की नजर लग गयी और पति ने 2007 में दूसरी शादी कर ली और तीनों को छोड़ दूसरी बीवी के साथ बरेली में रहने लगा।

पति हर माह खर्च के कभी पांच तो कभी 8-9 हजार रुपये भेज दिया करता। उसी से बच्चों की पढ़ाई के साथ दवा आदि चलती मगर शायद अभी अलका को इन सब मुश्किलों के बाद कुछ और नई तकलीफों से गुजरना था..उसे एनीमिया हो गया वो बीमार रहने लगी। कभी दवा के पैसे पूरे नहीं पड़ते तो कभी घर में खाने के लिए कुछ न होता। बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए, जैसे-तैसे इन 16-17 सालों में खींचतान कर बड़ी बेटी साक्षी ने ओपन स्कूल से बारहवीं पास की और बेटा वैभव दसवीं ही पास कर पाया और दोनों बच्चे घर पर रहने लगे क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे।

बीते गुरुवार को अलका को सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय ले जाया गया, वहां चिकित्सकों ने बताया कि उसकी हालत ठीक नहीं और फिर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे अस्पताल में बीमार मां अपने दो बच्चों को छोड़ इस दुनिया से विदा हो गयी। बच्चे सकते में आ गए, बदहवास से कभी किसी रिश्तेदार को फोन मिलाते तो कभी किसी को, किसी का फोन ऑफ तो कोई कवरेज क्षेत्र से बाहर, न कोई दोस्त न कोई अपना जो आंसू पोंछ सके..आंसू भी इतने सालों से मानो सूख से गए। इस गम में बीच अनजाना डर उन्हें सताने लगा, अब क्या करें..कहां जाएं..किससे कहें..यही सब सोचते हुए बस मां को कफ़न में लपेट उसे मक्खी परेशान न करें नीम के पत्तों से हवा देते रहे..और फिर कुछ समाज सेवियों की मदद से राजपुरा स्थित शमशान घाट पर अलका को इस दुनिया से अंतिम बार विदाई दी गयी ..लेकिन अब बच्चों का क्या होगा..वे क्या करेंगे..जैसे तमाम प्रश्न हमारे,आपके और पड़ोसियों के दिमाग मे कौंध रहे हैं..। पिता ने भी बच्चों और पत्नी से मुंह मोड़ लिया है।

फोन पर पिता और उसका दोस्त गुमराह करते रहे
बच्चों के पिता सुधीर को जब लोगों ने बताया कि उसकी पहली बीवी अलका की मृत्यु हो चुकी है तो वह कभी खुद आने की बात करता तो कभी किसी दोस्त को भेजने की बात करता लेकिन दोनों ही लोग देर शाम तक न तो घाट पहुंचे न घर।

आलीशान मकान अब किसका, बच्चे बोले यहीं रहेंगे
सुधीर ने हल्द्वानी गौजाजाली गणपति विहार में जो मकान बनाया था वह काफी अच्छा बनाया था, यहीं उसने अलका और बच्चों को रखा , लेकिन समय के साथ यह मकान अब खंडहर सा होने लगा, जिस तरह खुशियां फीकी हुईं उसी तरह मकान भी फीका पड़ने लगा, लेकिन अलका की मौत के बाद अब बच्चों को डर है कहीं उनके सिर से छत का साया भी न छिन जाए क्योंकि मकान के कागजात उसके पिता के पास हैं और वो पहले भी उसे बेचने की कोशिश कर चुका है।

बेगैरत पिता से इतनी नफरत की बच्चे नाम के पीछे सरनेम तक नहीं लगाते
साक्षी और वैभव के दिल में अपने पिता के प्रति इस कदर नफरत भरी है कि वे अपने नाम के पीछे पिता से मिला सरनेम तक नहीं लगाते, दोनों का कहना है मां तो अब छोड़ गई लेकिन पिता को तो हमने उसी दिन मरा मान लिया था जब वो अकेले तन्हा और मुसीबत के वक़्त हमें छोड़ गए थे।

जब बुजुर्ग बोली मत करो अलका का श्रृंगार वो कब के त्याग चुकी
अलका की अंतिम यात्रा से पहले उसे नहलाया गया और पड़ोस की महिलाएं उसका श्रृंगार करने लगीं तो मौके पर मौजूद एक बुजुर्ग महिला बोल उठी की मत करो श्रृंगार उसे पसंद नहीं वो बहुत पहले ही त्याग चुकी, यह सुन सबकी आंखें नम हो गईं और माहौल गमगीन हो गया।

रेड क्रास सोसाइटी बनी बच्चों की मददगार
सुशीला तिवारी अस्पताल में अलका के इलाज के दौरान रेड क्रास सोसाइटी के सदस्यों ने बच्चों का साथ दिया, अंतिम संस्कार भी राजपुरा शमशान घाट में सोसाइटी के अध्यक्ष नवनीत राणा, अमन शर्मा, अशोक बिसेन, वार्ड पार्षद रईस अहमद गुड्डू वारसी और दिनेश खुल्बे सहित अन्य कार्यकर्ता मौजूद रहे। इन समाज सेवियों ने कहा कि किसी भी हाल में बच्चों के सर से छत का साया छीनने नहीं दिया जाएगा। वे हरसंभव मदद करेंगे और बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा भी उन्हीं का है, और प्रशासन से मिलकर इनकी आगे की शिक्षा आदि की व्यवस्था करवाई जाएगी।

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