बरेली: शहर की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है बुध वाली मस्जिद

अमृत विचार, बरेली। देश में इन दिनों धर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है। मगर बरेली शहर की पहचान हमेशा गंगा-जमुनी तहजीब की रही है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनको दूसरे मजहब के लोगों ने बनवाया। फिर चाहें मंदिर किसी मुसलमान द्वारा बनाने की बात हो या किसी मस्जिद की तामीर हिंदू ने …
अमृत विचार, बरेली। देश में इन दिनों धर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है। मगर बरेली शहर की पहचान हमेशा गंगा-जमुनी तहजीब की रही है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनको दूसरे मजहब के लोगों ने बनवाया। फिर चाहें मंदिर किसी मुसलमान द्वारा बनाने की बात हो या किसी मस्जिद की तामीर हिंदू ने की हो। शहर के नया टोला आलमगीरीगंज स्थित बुध वाली मस्जिद इन्ही मिसालों में से एक है, जो भाईचारे का संदेश देती है। मस्जिद का निर्माण एक हिंदू परिवार ने कराया और आज भी इसकी चाबी उसी परिवार के पास रहती है।
इस मस्जिद का निर्माण वर्षों पहले पंडित दासीराम ने कराया था, तब से आज तक मस्जिद की देखभाल का जिम्मा उनके वंशज ही निभा रहे हैं। आपसी भाईचारे की मिसाल बनी इस मस्जिद में बुधवार को हिन्दू और मुस्लिम समेत सभी धर्मों के लोग बड़ी संख्या में इबादत के लिए पहुंचते हैं। यही कारण है कि इस मस्जिद को बुध वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद का निर्माण कराने वाले पंडित दासीराम के वंशज पंडित राजेन्द्र कुमार शर्मा मस्जिद की देखरेख करते रहे, मगर बीते वर्ष अक्टूबर में उनका निधन हो गया।
अब उनके बेटे संजय कुमार शर्मा के पास मस्जिद की चाबी रहती है। संजय ने बताया कि उनके पूर्वज पंडित दासी राम के कोई औलाद नहीं थी, जिसके बाद उन्होंने दुआ की थी कि औलाद पैदा होने पर वह मस्जिद का निर्माण कराएंगे। दुआ कबूल हुई तो उन्होंने इस मस्जिद का निर्माण कराया। दासी राम के बाद, पंडित द्वारिका प्रसाद और फिर पंडित राजेंद्र प्रसाद ने मस्जिद की देखभाल की। अब संजय कुमार शर्मा परिवार की चौथी पीढ़ी के हैं जो इस मस्जिद की देखरेख कर रहे हैं। सुबह 5 बजे उठकर मस्जिद का दरवाजा खोलते हैं। वहीं, मस्जिद के इमाम जाने आलम बताते हैं कि पंडित जी के परिवार ने मस्जिद का निर्माण कराया था। आज भी यहां एकता और भाईचारा कायम है। कभी किसी प्रकार की दिक्कत पेश नहीं आई।
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