कालीचौड़ मंदिर में भक्तों की हर मुराद होती है पूरी, सारे दुख होते हैं दूर

हल्द्वानी, अमृत विचार: शहर में माता के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें काठगोदाम से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालीचौड़ मंदिर एक विशेष स्थान रखता है। कालीचौड़ मंदिर को शहर का दूसरा सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। गौलापार में जंगल के बीचों-बीच मां काली का यह प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसमें चैत्र नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। मान्यता है कि इस मंदिर में मां काली से सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। नवरात्रि के दिन मां के मंदिर में जो भक्त पूरी श्रद्धा से शीश झुकाता है, उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। शिवरात्रि पर भी भारी संख्या में श्रद्धालु मां काली के दर्शन करने यहां आते हैं।
कभी सुल्ताना डाकू का गढ़ रहा गौलापार स्थित सुल्तान नगरी होते हुए कच्चे मार्ग से इस स्थान पर पहुंचा जाता है। पहले यह मार्ग पैदल ही था लेकिन अब वाहन ऊपर मंदिर तक जाते हैं। भक्त लगभग 2 किमी. जंगल मार्ग पर चलकर काली चौड़ मंदिर पहुचते हैं। चारों ओर वन से आच्छादित यह क्षेत्र काफी शीतलता प्रदान करता है। जंगली जानवरों, चिड़ियों की आवाज कभी डर तो कभी मन में कौतुहल पैदा करती है। ध्यान, योग साधना के लिए उपयुक्त इस स्थान का अपना अलग ही महत्व है।
शहर के बुजुर्गों का कहना है कि लगभग 3 दशक पहले किच्छा के एक सिख परिवार से ताल्लकु रखने वाले (अशोक बाबा) परिवार ने अपने मृत बच्चे को यहां लाकर मां काली के दरबार में यह कहकर समर्पित कर दिया कि मां अब इस बालक का जो चाहे आप वो करें, बताया जाता है कि ऐसा करने पर वह मृत बच्चा पुनर्जीवित हो उठा। तभी से यह परिवार मंदिर में अगाध श्रद्धा रखता है और आज तक यह परिवार नवरात्र व शिवरात्रि पर भंडारे का आयोजन करता है।
ऋषि-मुनियों की तपस्या का केंद्र रहा है कालीचौड़
जंगल के बीचोंबीच स्थापित कालीचौड़ मंदिर शांति का अहसास देता है। माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की तपस्या का केंद्र रहा है। कथित तौर पर पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक भक्त को देवी ने सपने में दर्शन दिए थे और इस जगह पर जमीन में दबी अपनी प्रतिमा के बारे में बताया था। जिसके बाद जमीन की खुदाई कर मां काली समेत सभी मूर्तियों को बाहर निकाला गया। और जंगल के बीचोंबीच ही देवी का मंदिर स्थापित किया गया, जिसे आज कालीचौड़ मंदिर नाम से जाना जाता है।