उत्तराखंड: बच्चों को पढ़ाई के साथ लोकल फॉर वोकल के गुर सिखा रहे शिक्षक नरेंद्र गोस्वामी, शिक्षा महानिदेशक ने सराहा

बागेश्वर,अमृत विचार। आमतौर पर जहां स्कूली बच्चे मोबाइल की लत में डूबते जा रहे हैं वहीं, जनपद के राजकीय जूनियर हाईस्कूल के स्कूली बच्चे बेहतर सुलेख का प्रयास करते हैं। बच्चों को पढ़ाई के साथ ही लोकल फार वोकल के तहत कई कलाकृतियां सिखाई जा रही हैं। विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक नरेंद्र गोस्वामी ने इस …
बागेश्वर,अमृत विचार। आमतौर पर जहां स्कूली बच्चे मोबाइल की लत में डूबते जा रहे हैं वहीं, जनपद के राजकीय जूनियर हाईस्कूल के स्कूली बच्चे बेहतर सुलेख का प्रयास करते हैं। बच्चों को पढ़ाई के साथ ही लोकल फार वोकल के तहत कई कलाकृतियां सिखाई जा रही हैं।
विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक नरेंद्र गोस्वामी ने इस कार्य का बीड़ा ऐसे उठाया कि आज शिक्षा महानिदेशक भी इसकी सराहना करते हैं। राजकीय जूनियर हाईस्कूल करूली के अध्यापकों की मेहनत अब उच्चाधिकारियों की नजर पड़ी है। शिक्षा महानिदेशक वंशीधर तिवारी ने यहां के प्रधानाध्यापक नरेंद्र गोस्वामी के प्रयासों का अवलोकन करते हुए कार्यों की सराहना की है। इससे महानिदेशक इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसकी तारीफ करते हुए इसे सोशल मीडिया में खुद शेयर किया है। इससे पूर्व जिलाधिकारी विनीत कुमार ने भी इस विदयालय के अध्यापकों व बच्चों के प्रयासों की तारीफ कर चुके हैं।
बच्चों की लेख ऐसी कि कम्यूटर का हो मुकाबला
राजकीय जूनियर हाईस्कूल करूली के बच्चों की लेख व कलाकृतियां ऐसी हैं कि मानो कम्यूटर से यह लिखा हो। बच्चों द्वारा बनाए गए पोस्टर देख कर भी हर कोई तारीफ करता नजर आएगा। इसमें प्रभारी प्रधानाध्यापक के प्रयास रंग लाए हैं।
बच्चों की चलती हैं एक्स्ट्रा क्लास
जहां कई स्कूलों के समय से पूर्व बंद होने की शिकायत आम हो चली हैं। वहीं, जूनियर हाईस्कूल करूली ऐसा स्कूल है जहां बच्चों के लिए प्रतिदिन साढ़े तीन बजे तक कक्षाएं चलती हैं। प्रधानाध्यापक नरेंद्र गोस्वामी अभिभावकों व बच्चों की सहमति से अतिरिक्त कक्षाएं चलाते हैं तथा बच्चों की सुलेख की बारीकियां देते हैं। साथ ही चीड़ की बगेट से विभिन्न कलाकृतियां बनाना सिखाया जाता है। इससे प्रधानमंत्री की लोकल टू वोकल की अपील को बढ़ावा मिल रहा है।
नहीं मिला अब तक कोई सम्मान
जहां कई लोग अपने छोटे से कार्यों का बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं। वहीं, शिक्षक नरेंद्र गोस्वामी अब तक प्रचार-प्रसार व सम्मान से दूर हैं। उन्होंने विभागीय रूप से ही क्रियाकलापों को शिक्षा महानिदेशक तक भेजा। शिक्षक ने बताया कि वे वर्ष 1998 से शिक्षण कार्य कर रहे हैं तथा करूली में 2018 से तैनात हैं और इस तरह के नवाचार करते रहते हैं। जब उनसे पूछा कि उन्हें कोई सम्मान मिला तो कहा कि उन्होंने इसके लिए आवेदन ही नहीं किया। गत वर्ष कुछ अभिभावकों की जिद पर आवेदन किया परंतु उनका चयन नहीं किया गया। साथ ही कहा कि पुरस्कार के लिए आवेदन प्रक्रिया बंद होनी चाहिए तथा इसका मूल्यांकन उच्चाधिकारियों की समिति खुद तय करें।