प्रधानमंत्री की यात्रा

कोरोना की मार झेल रही दुनिया को रूस-यूक्रेन युद्ध ने आर्थिक तौर पर अव्यवस्थित कर दिया है। भारत अमेरिका-नाटो और रूस-चीन के भूराजनीतिक तनाव के बीच फंसा हुआ है। परंतु अब तक उसने सही कदम उठाए हैं। इस संकट काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिनों में तीन यूरोपीय देशों की यात्रा की। कई …
कोरोना की मार झेल रही दुनिया को रूस-यूक्रेन युद्ध ने आर्थिक तौर पर अव्यवस्थित कर दिया है। भारत अमेरिका-नाटो और रूस-चीन के भूराजनीतिक तनाव के बीच फंसा हुआ है। परंतु अब तक उसने सही कदम उठाए हैं। इस संकट काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिनों में तीन यूरोपीय देशों की यात्रा की। कई बड़े नेताओं से मुलाकात की और करीब 18 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए। मोदी ने यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रम पर विचारों का आदान-प्रदान किया।
मोदी उन देशों के राष्ट्राध्यक्षों से भी मिले, जो नाटो में जाने को बेताब हैं। नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा के शुरुआती दो दिनों में यूरोप और अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद जिस मजबूती से अपनी बात रखी, वह निश्चित तौर पर मजबूत होते भारत का संकेत देता है। इस यात्रा पर यूरोप ही नहीं, चीन, अमेरिका और रूस समेत अन्य देशों की भी नजरें टिकी रहीं। महत्वपूर्ण है कि फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और उसमें भारत की स्थायी सदस्यता तथा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता संबंधी प्रयास का समर्थन किया है। चीन एनएसजी में भारत के शामिल होने का विरोध करता है।
चीन के विरोध ने भारत के समूह में शामिल होने की राह को कठिन बना दिया है क्योंकि एनएसजी सहमति के सिद्धांत पर चलता है। फ्रांस और भारत के बीच इस दौरान कुल नौ समझौते हुए जिनमें भारत-जर्मन ग्रीन हाइड्रोजन कार्यबल, कृषि पारिस्थितिकी पर जेडीआई जैसे कई मुद्दे समझौते में शामिल थे। साथ ही भारत-फ्रांस में आतंकवाद तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों से संयुक्त रूप से निपटने पर सहमति बनी।
मोदी ने दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया जिसमें नॉर्वे, स्वीडन, आईलैंड, फिनलैंड और डेनमार्क के प्रधानमंत्री भी शामिल हुए थे। भारत और नॉर्डिक देशों के बीच कुल नौ समझौते हुए। इनमें माइग्रेशन और मोबिलिटी, कौशल विकास, वोकेशनल एजुकेशन, एंटरप्रेन्योरशिप और एनर्जी पॉलिसी शामिल है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जिस तरीके से रूस और चीन की नजदीकियां बढ़ी हैं, निश्चित तौर पर भारत के लिए चिंताजनक हैं।
ऐसे में यूरोप को साधना भारत के लिए भी उतना ही जरूरी है जितना भारत को साधना यूरोप के लिए। चूंकि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की तटस्थ भूमिका ने पश्चिम को इस वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि सभी शक्तियां दुनिया को उसी तरह नहीं देखती हैं, जैसे अमेरिका और यूरोपियन संघ देखते हैं। रूस और उसके विरोधियों दोनों को अपनी स्थिति का अहसास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यूरोप यात्रा ने करा दिया है। प्रधानमंत्री की यह यात्रा कूटनीतिक और व्यापारिक दोनों स्तर पर सफल रही।