Chaitra Navratri 2022: नवरात्रि के नौवें दिन होती है मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें पूजन विधि

Chaitra Navratri 2022: नवरात्रि के नौवें दिन होती है मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें पूजन विधि

नवरात्रि वर्ष में चार बार होती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन। नवरात्रि से वातावरण के तमस का अंत होता है और सात्विकता की शुरुआत होती है। माता रानी के सभी भक्त इन 9 दिनों को बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाते हैं। नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा …

नवरात्रि वर्ष में चार बार होती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन। नवरात्रि से वातावरण के तमस का अंत होता है और सात्विकता की शुरुआत होती है। माता रानी के सभी भक्त इन 9 दिनों को बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाते हैं। नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। वहीं बात करें नवरात्रि के नौवें दिन की तो इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि
मां भगवती को इस दिन हलवा, पूड़ी, सब्जी, खीर, काले चने, फल और नारियल का भोग लगाना चाहिए। साथ ही इस दिन मां के वाहन, योगिनियों, हथियार और अन्य देवी-देवताओं के नाम से हवन-पूजन करना उत्तम माना जाता है। इससे माता की कृपा प्राप्त होती है और भाग्य का भी उदय होता है। इस दिन माता की पूजा करते समय बैंगन या जामुनी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। माता सिद्धिदात्री की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करने के बाद कन्या पूजन करना चाहिए। बिना कन्या पूजन के नवरात्रि का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। कुछ घर में अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं तो कुछ घरों में नवमी के दिन कन्या पूजन करने के विधान है।

कैसे करें कन्या पूजन
कन्या पूजन के लिए अपने घर में 2 से 10 साल तक की कन्याओं को भोजन करने के लिए बुलाएं। कन्याओं और एक कंजक के पैर स्वच्छ जल से धोकर उन्हें आसन पर बिठाएं। अब सभी कन्याओं का रोली या कुमकुम और अक्षत से तिलक करें। इसके बाद गाय के उपले को जलाकर उसकी अंगार पर लौंग, कर्पूर और घी डालकर अग्नि प्रज्वलित करें। इसके बाद कन्याओं के लिए बनाए गए भोजन में से थोड़ा सा भोजन पूजा स्थान पर अर्पित करें। अब सभी कन्याओं और कंजक के लिए भोजन परोसे। उन्हें प्रसाद के रूप में फल, सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अथवा उनके उपयोग की वस्तुएं प्रदान करें। सभी कन्याओं के पैर छूकर कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें सम्मान पूर्वक विदा करें।

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