बरेली: बसपा में आधी आबादी के मुद्दों गायब, टिकट देने में भी कम दिलचस्पी

बरेली: बसपा में आधी आबादी के मुद्दों गायब, टिकट देने में भी कम दिलचस्पी

बरेली,अमृत विचार। बसपा ने इस बार तमाम वर्गों को साधने की कोशिश की लेकिन पार्टी में आधी आबादी के मुद्दे पूरी तरह से गायब दिखे। बरेली की नौ सीटों की बात करें तो बसपा ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बसपा ने …

बरेली,अमृत विचार। बसपा ने इस बार तमाम वर्गों को साधने की कोशिश की लेकिन पार्टी में आधी आबादी के मुद्दे पूरी तरह से गायब दिखे। बरेली की नौ सीटों की बात करें तो बसपा ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बसपा ने करीब 36 साल बाद जिले की एक सीट पर महिला प्रत्याशी को टिकट दिया है।

इसके अलावा इसी हफ्ते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने बरेली में अपनी मंडलीय चुनावी रैली में इस बार जहां तमाम वर्गों को रिझाने की कोशिश करते हुए अपने पिटारे से तमाम लोक-लुभावनी घोषणाएं की थी, उसमें महिलाओं से सीधे तौर जुड़े तौर से मुद्दे नदारद थे। हालांकि पार्टी नेताओं का कहना है कि सर्वजन हिताय पर काम कर रही बसपा जब सभी वर्गों के हितों की बात करती है तो उससे महिलाओं को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए।

चुनाव में बसपा में महिलाओं को टिकट देने या फिर उसने सीधे तौर से जुड़े हितकारी मुद्दों को उछालने में कहीं न कहीं देखी गई है। टों पर हार का मुंह देखना पड़ा। बसपा के अस्तित्व में आने के बाद पार्टी ने अपने शुरुआती दौर में आधी आबादी को लेकर कुछ दिलचस्पी दिखाई थी। उस समय बरेली जिले की दो सीट पर वर्ष 1986 के विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था।

इसमें कैंट से तारादेवी और फरीदपुर सीट से चंपा गौतमी का टिकट फाइनल हुआ था लेकिन इन दोनों ही सीटों पर बसपा को शिकस्त झेलनी पड़ी। इसके बाद विधानसभा के चुनावों में एक तरह से महिला उम्मीदवारों की भागीदारी शून्य रही और बसपा के गठन के बाद अब तक बरेली की किसी सीट पर कोई महिला उम्मीदवार की विधायक की कुर्सी को लेकर ताजपोशी नहीं हो सकी है।

इसके बाद पार्टी ने महिला उम्मीदवारों को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई तो महिला दावेदार भी सामने नहीं आईं। इसका नतीजा यह रहा कि आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही महिलाओं पर बसपा के चुनाव रण से एक तरह से विरत हो गईं। पार्टी ने लंबे समय बाद अब इस कमी को महसूस किया है।

शायद यही वजह है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में फरीदपुर की आरक्षित सीट करीब 36 साल के लंबे अंतराल के बाद महिला उम्मीदवार शालिनी सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया है। जिले की यह इकलौती सीट पर अरसे बाद महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा गया है।

बसपा में लंबे समय से दिखाई दे रही महिलाओं से जुड़े मुद्दों की कमी इस बार भी कहीं न कहीं दिखाई दे रही है। 7 फरवरी को मायावती की बरेली में हुई चुनाव रैली में दलित मतदाताओं से इतर युवा, बेरोजगारों, किसानों, कर्मचारियों, मजदूरों सहित दूसरे तमाम वर्गों के हितों और घोषणाओं की बात तो की गई लेकिन इसमें महिलाओं से सीधे जुड़े मुद्दों की कमी रही।

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