उत्तराखंड की इस घास के हैं कई उपयोग… कूची, रस्सी और झाडू बनाने के आती है काम

प्राकृतिक वादियों और देवों के धाम के लिए देवभूमि की वादियां देश-दुनिया में मशहूर हैं। यहां हिम शिखरों से निकलने वाली जल धाराएं और जड़ी बूटियों का खजाना भी छिपा है। पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों पर उगने वाली एक लटनुमा घास की प्रजाति भी है जिसे बाबिल, बाबड़ के नाम से जाना जाता है। यह …
प्राकृतिक वादियों और देवों के धाम के लिए देवभूमि की वादियां देश-दुनिया में मशहूर हैं। यहां हिम शिखरों से निकलने वाली जल धाराएं और जड़ी बूटियों का खजाना भी छिपा है। पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों पर उगने वाली एक लटनुमा घास की प्रजाति भी है जिसे बाबिल, बाबड़ के नाम से जाना जाता है। यह घास कूची बनाने से लेकर रस्सी और झाडू बनाने के काम में आती है। मजबूती और टिकाऊ होने से इस घास से बने उत्पादों की स्थानीय स्तर पर ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी मांग रहती है।

चट्टानों पर उगने के कारण बाबिल घास को पाना भी जोखिमपूर्ण कार्य है। इसके पत्ते गोल, लगभग चीड़ की पत्तियों की शक्ल में काफी लम्बे व नुकीले होते हैं। अगर घास काटते समय सावधानी नहीं बरती तो कई बार हाथ लहुलूहान भी हो जाता है। ऐसे में नुकीले होने के कारण मवेशी भी इस घास को खाना पसंद नहीं करते हैं।
पहाड़ में मुख्य रूप से बाबिल या बाबड़ का उपयोग कूची बनाने के लिए किया जाता है। कूची बनाने के लिए बाबिल के एक मूठे को मुलायम करने के लिए एक-दो घंटे पानी में डुबो दिया जाता है। फिर इस घास की जड़ के हिस्सों को बराबर करके बीचोंबीच में 6 या 8 इंच का मोटा डंडा फंसाकर बाबिल के साथ कसकर बांध दिया जाता है। इसके बाद मूठे को नीचे की ओर करके चारों ओर बाबिल की ऊपरी छोर की घास को झुका दिया जाता है। अब बटी गई बाबिल की डोरियों से नीचे से दो इंच छोड़कर बांधते हैं। इस प्रकार एक कूची में लंबाई के अनुसार चार-पांच गांठ तक कस कर देते हैं। गांठें जितनी नजदीक होंगी, कूची उतनी ही टिकाऊ होती है। अंतिम गांठ के बाद कूची में तीन से चार इंच खुला छोड़कर घास के सिरों को बराबर में किसी धारदार वसूले या दराती से नीचे लकड़ी का आधार लेकर काट देते हैं। इसके बाद घर की सफाई अथवा रंगरोगन के लिए कूची तैयार हो जाती है।
इसके साथ ही बाबिल घास का उपयोग रस्सी बनाने में भी किया जाता है। इससे बनी रस्सी भीमल की रस्सी से ज्यादा मजबूत मानी जाती है। कुछ लोग टोटके के रूप में बाबिल घास से झाड़ने का काम लेते हैं। पहाड़ में मिट्टी की दीवारों वाले घरों में बाबिल घास को छोटे छोटे टुकड़ों को काटकर मिट्टी में मिलाया जाता है, जिससे मिट्टी चटकती नहीं है।