युद्ध में जाने से पहले इस मंदिर में शीश नवाना नहीं भूलते सेना के जवान, सैन्य अफसर भी टेकते हैं माथा

देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है। ऐसा ही एक धाम पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है। यहां मां हाट कालिका का मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है। हाट कालिका महाशक्ति पीठ देवदार के पेड़ों से चारों तरफ से घिरा हुआ है। पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण …
देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है। ऐसा ही एक धाम पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है। यहां मां हाट कालिका का मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है। हाट कालिका महाशक्ति पीठ देवदार के पेड़ों से चारों तरफ से घिरा हुआ है। पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण के मानस खंड में यहां स्थित देवी का वर्णन मिलता है। मान्यता के अनुसार, मां कालिका का रात में डोला चलता है। इस डोले के साथ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले को छू ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है।
यहां विश्राम करती हैं मां काली
जानकार बताते हैं कि हाट कालिका मंदिर में मां काली विश्राम करती हैं। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है। सुबह में इस बिस्तर पर सिलवटें पड़ी होती हैं, जो संकेत देती है कि यहां पर किसी ने विश्राम किया था। बताया जाता है कि जो भी महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।

कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य हैं मां हाट कालिका
बताया जाता है कि हाट कालिका मंदिर में विराजमान महाकाली भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य हैं। इस रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाते हैं तो इस मंदिर का दर्शन जरूर करते हैं। यही कारण है कि इस मंदिर की धर्मशालाओं में किसी न किसी सैन्य अफसर का नाम जरूर मिल जाते हैं। मां हाट कालिका देश की सबसे पुरानी सेना कुमाऊं रेजीमेंट की देवी भी है। कहते है कि देवी ने सैनिक की एक पुकार पर सेना के सैकड़ों जवानों की जान बचाई थी जिसके बाद अब हर जंग में जाने से पहले कुमाऊं रेजिमेंट के जवान इस देवी की पूजा करते हैं। लोग बताते हैं कि एक बाद सेना की कुमाऊं रेजिमेंट के जवान पानी के जहाज से कहीं कूच कर रहे थे। अचानक तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा। तब उन जवानों में से एक पिथौरागढ़ निवासी जवान में मां कालिका की स्तुति की। कुछ ही देर बार डूबता जहाज ऊपर आने लगा और खुद धीर-धीरे किनारे लग गया।
इस घटना के बाद कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों ने मंदिर में दो बड़ी घंटियां चढ़ाई और मंदिर का गेट बनवाया। इस चमत्कार के बाद कुमाऊं रेजिमेंट युद्ध में जाने से पहले और ट्रेनिंग में जाने से पहले काली माता का नाम लिए बिना आगे नहीं बढ़ते। कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों की आस्था मंदिर के साथ ऐसी है कि कहा जाता है कि बस महाकाली का नाम लेते ही लड़ाई के मैदान में जवानों की शक्ति दोगुनी हो जाती है। जवानों का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनकी ओर से कोई और लड़ाई कर रहा है और दुश्मनों का खात्मा कर रहा है।

जब आदि गुरु शंकराचार्य ने माता की ज्वाला को किया शांत
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद की गंगोलीहाट तहसील महाकाली का हाट कालिका मंदिर है। बताते हैं कि इसी मंदिर के स्थान पर माता ने काली रूप धारण कर जब शत्रुओं का नाश किया था तो यहां मां का गुस्सा शांत करने के लिए भगवान शिव उनके पांव के नीचे लेट गए थे। कहा जाता है इस स्थान पर कई वर्षों तक माता की तेज ज्वाला निकलती देखी गई है। कई वर्षों बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने माता की ज्वाला को शांत किया और यहां माता के शांत स्वरूप की स्थापना की।
हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु मां के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। हाट कालिका मंदिर में हर रोज शाम आरती के बाद माता को भोग लगाया जाता है, जिसके उपरांत माता की शयन आरती गाई जाती है और माता का बिस्तर लगाया जाता है। फिर माता के मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। कहा जाता है कि माता रात्रि विश्राम के लिए मंदिर में पहुंचती हैं और सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर में कुछ इस तरह का आभास होता है कि जैसे किसी ने इसमें रात्रि विश्राम किया हो।
450 साल पुराने देवदार से घिरा है मंदिर
महाकाली के दर्शनों के लिए हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रों में हाट कालिका मंदिर में भक्तों की भीड़ बढ़ती जाती है। मंदिर को चारों ओर से देवदार के पेड़ों ने घेरा हुआ है। सैकड़ों साल पुराने देवदार के पेड़ मंदिर को और ज्यादा सुंदर और विहंगम बनाते हैं। गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने यहां रिसर्च की है जिसमें यह पता चला है कि मंदिर के कुछ पेड़ 450 साल पुराने हैं।
कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों ने स्थापित की थी महाकाली की मूर्ति
कुमाऊं रेजीमेंट ने पाकिस्तान के साथ छिड़ी 1971 की लड़ाई के बाद गंगोलीहाट के कनारागांव निवासी सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में सैन्य टुकड़ी ने इस मंदिर में महाकाली की मूर्ति की स्थापना की थी। कालिका के मंदिर में शक्ति पूजा का विधान है। सेना की ओर से स्थापित यह मूर्ति मंदिर की पहली मूर्ति थी। इसके बाद साल 1994 में कुमाऊं रेजीमेंट ने ही मंदिर में महाकाली की बड़ी मूर्ति चढ़ाई है। कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर रानीखेत के साथ ही रेजीमेंट की बटालियनों में हाट कालिका के मंदिर स्थापित हैं। मां हाट कालिका की पूजा के लिए सालभर सैन्य अफसरों और जवानों का तांता लगा रहता है।

चमत्कारिक है मां हाट कालिका के मंदिर निर्माण की कथा
इस मंदिर के निर्माण की कथा भी बड़ी चमत्कारिक रही है। माना जाता है कि महामाया की प्रेरणा से प्रयाग में होने वाले कुंभ मेले में से नागा पंथ के महात्मा जंगम बाबा को स्वप्न में कई बार इस शक्ति पीठ के दर्शन होते थे। उन्होंने रूद्र दंत पंत के साथ यहां आकर भगवती के लिए मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया। लेकिन उनके आगे मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की समस्या आन पडी। इसी चिंता में एक रात्रि वे अपने शिष्यों के साथ अपनी धूनी के पास बैठकर विचार कर रहे थे। कोई रास्ता नजर न आने पर थके व निढाल बाबा सोचते-सोचते शिष्यों सहित गहरी निद्रा में सो गए और स्वप्न में उन्हें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूपी तीन कन्याओं के दर्शन हुए। वे दिव्य मुस्कान के साथ बाबा को स्वप्न में ही अपने साथ उस स्थान पर ले गयी जहां पत्थरों का खजाना था।
यह स्थान महाकाली मंदिर के निकट देवदार वृक्षों के बीच घना वन था। इस स्वप्न को देखते ही बाबा की नींद भंग हुई। उन्होंने सभी शिष्यों को जगाया और स्वप्न का वर्णन कर रातों-रात चीड़ की लकड़ी की मशालें तैयार की। पूरा शिष्य समुदाय उस स्थान की ओर चल पड़ा, जिसे बाबा ने स्वप्न में देखा था। वहां पहुंचकर रात्रि में ही खुदाई का कार्य शुरू किया गया। थोड़ी ही खुदान के बाद यहां संगमरमर से भी बेहतर पत्थरों की खान निकल आई। कहते हैं कि पूरा मंदिर, भोग भवन, शिव मंदिर, धर्मशाला और प्रवेश द्वारों का निर्माण होने के बाद पत्थर की खान अपने आप ही समाप्त हो गई। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस खान में नौ फिट से भी लंबे तराशे हुए पत्थर मिले।

हर मुराद होती है पूरी
उत्तराखंड के लोगों की आस्था का केन्द्र महाकाली मंदिर अनेक रहस्यमयी कथाओं को अपने आप में समेटे हुए है। कहा जाता है कि जो भी भक्तजन श्रद्धापूर्वक महाकाली के चरणों में आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है उसके रोग, शोक, दरिद्रता एवं महान विपदाओं का हरण हो जाता है व अतुल ऐश्वर्य एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि मां हाल कालिका मंदिर में आने वाले भक्त की हर मुराद पूरी होती है।