राज्य में बड़े बदलाव का दंभ, सीटों पर नहीं मिले प्रत्याशी

हल्द्वानी, अमृत विचार। राज्य की पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव को मात्र दस दिन का वक्त रह गया है। नामांकन का काम हफ्ते भर पहले पूरा हो चुका है। यानी राज्य की चुनावी रणभूमि में दो-दो हाथ करने के इच्छुक लोगों व राजनीतिक दलों को अब पांच साल का इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन राज्य में …
हल्द्वानी, अमृत विचार। राज्य की पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव को मात्र दस दिन का वक्त रह गया है। नामांकन का काम हफ्ते भर पहले पूरा हो चुका है। यानी राज्य की चुनावी रणभूमि में दो-दो हाथ करने के इच्छुक लोगों व राजनीतिक दलों को अब पांच साल का इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन राज्य में तीसरे विकल्प का दंभ ठोंकने वाले राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के दलों को इस बार भी कोई बड़ी सफलता मिलने के आसार कम ही हैं।
कारण यह है कि इन दलों को राज्य की सभी सीटों पर लड़ने के लिए प्रत्याशी ही नहीं मिल सके हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि राज्य में छोटे दलों के लिए फिर से संभावनाएं बहुत ज्यादा बनती नहीं दिख रही हैं। यह भी हो सकता है कि इतनी सीटों में से ही इन दलों के प्रत्याशी कोई बड़ा करिश्मा कर दें लेकिन यह बस करिश्मा भर ही हो सकता है। कहा जाए कि राज्य में चुनावी धरती छोटे दलों के लिए बहुत ज्यादा उपजाऊ नहीं है। आइए, इन दलों के प्रत्याशियों की स्थिति पर नजर डालते हैं।
वामदल
राज्य में वामदलों की बात करें तो यहां मात्र उपस्थिति भर है। देश में राष्ट्रीय दल की पहचान रखने वाले सीपीआई व सीपीएम दोनों ही चुनाव लड़ने की रस्म अदायगी करते हैं। 2002 में सीपीआई ने 14, सीपीएम ने पांच, 2007 में सीपीआई ने तीन, सीपीएम ने छह, 2012 में सीपीएम ने छह, सीपीआई ने पांच, 2017 में सीपीआई ने चार, सीपीएम ने छह सीटों पर प्रत्याशी उतारे। लेकिन इन सभी पर प्रत्याशियों की जमानत तक नहीं बची। अबकी बार की बात करें तो भी यह दल दस सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। वाम नेताओं का दावा है कि दूसरे दलों के साथ मिलकर वाम विपक्ष की परिकल्पना को साकार किया जाएगा।
बसपा
कभी राज्य की राजनीति में बसपा बड़ा विकल्प बनकर उभरी। 2002 के चुनाव में बसपा के सात विधायक जीतकर आए। 69 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बसपा के बाकी सीटों पर जमानत जब्त हो गई। 2007 में भी बसपा के आठ विधायक बने। 2012 में तीन विधायक बने लेकिन 52सीटों पर जमानत जब्त हुई। 2017 में बसपा का कोई प्रत्याशी नहीं जीता, 60 सीटों पर जमानत तक नहीं बची। इस बसपा ने 60 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी तो खड़े किए लेकिन बहुत ज्यादा असर दिखता नजर नहीं आ रहा है। हालात यह हैं कि रुद्रप्रयाग सीट पर बसपा प्रत्याशी लक्ष्मी देवी ने कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में नाम तक वापस ले लिया।
समाजवादी पार्टी
2004 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट से सपा सांसद चुना गया। ऐसा लगा कि सपा अब राज्य में बड़ी शक्ति बनेगी। सपा ने 2002 के विधानसभा चुनाव में 63 सीटों पर चुनाव लड़ाया लेकिन 57 सीटों पर प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए। 2007 में 55 में से 49 प्रत्याशी भी अपनी जमानत राशि गंवा बैठे। 2012 में 45 में से 44 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। इस बार समाजवादी पार्टी की बात करें तो सभी सीटों पर प्रत्याशी तय किए गए लेकिन नामांकन कराने गए मात्र 56। बाकी सीटों पर अब निर्दलीयों को समर्थन देकर चुनाव में उपस्थिति दर्ज कराने की रस्म अदायगी की जा रही है।
उत्तराखंड क्रांति दल
उक्रांद को क्षेत्रीय ताकत के तौर पर जाना जाता है। अविभाजित उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उक्रांद के विधायक रहे लेकिन राज्य बनने के बाद से जनाधार घटता जा रहा है। 2002 में 62 सीटों पर चुनाव लड़कर उक्रांद के चार विधायक जीते। 54 पर जमानत जब्त हुई। 2007 में 61 सीटों पर चुनाव लड़ा गया। तीन विधायक बने। 52 पर जमानत जब्त हुई। 2012 व 2017 में दो धड़ों के साथ उक्रांद चुनाव लड़ा। 2012 में एक विधायक चुना गया लेकिन वह भी दूसरी पार्टी में चला गया। 2022 में उक्रांद नेता बड़े बदलाव की बात कर रहे हैं लेकिन शीर्ष नेता चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। राज्य में मात्र 46 सीटों पर ही चुनाव लड़ने को प्रत्याशी मिले हैं।