मुरादाबाद : इनकी नियति में लिख गया रोना और छला जाना

मुरादाबाद :  इनकी नियति में लिख गया रोना और छला जाना

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। चुनावी भोंपू बजने लगे हैं।… तो इन गलियों में फिर से उम्मीद जगी है। समय-समय पर लोग आ रहे हैं। अपनी बातें सुना रहे हैं। झंडे और चुनाव निशान को हवाला देकर गुहार लगा रहे हैं। करीब हर बार यह भरोसा इन्हें दिया जाता है। दावा यह कि हम दिक्कत कम कर देंगे। …

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। चुनावी भोंपू बजने लगे हैं।… तो इन गलियों में फिर से उम्मीद जगी है। समय-समय पर लोग आ रहे हैं। अपनी बातें सुना रहे हैं। झंडे और चुनाव निशान को हवाला देकर गुहार लगा रहे हैं। करीब हर बार यह भरोसा इन्हें दिया जाता है। दावा यह कि हम दिक्कत कम कर देंगे। कुशल-अकुशल श्रमिक हों या ठेके पर कारखाना संचालित कराने वाले।

  • धातु के उत्पाद बनाने वालों के दर्द का पारावार नहीं
  • जिले में करीब 35 हजार घरों में होती है दस्तकारी

उम्मीद सभी के मन में जग रहीं हैं। लेकिन, जो सपने अब तक दिखाए गए, वह साकार नहीं हो पाये। शायद इसकी बड़ी वजह है चुनाव के दौरान दिखाए गए भरोसे और सपने का साकार नहीं हो पाना। हम बात कर रहे हैं समाज के उस तबके की जिसकी कीमत हर चुनाव में लगती है। अबकी भी माहौल बना है। जिले में करीब चार लाख श्रम सीकर दस्तकार हैं। जिनकी मेहनत से पीतल की चमक बढ़ती है। वर्षों से इन कामगारों के काम भी बोल रहे हैं। अब फर्क दिखने का एलान भी हैं। लेकिन करूला, बरबलान, पीरजादा, रोशनपुर, भोजपुर, कुंदरकी के हजारों हाथों से कालिक कब साफ होगी? अभी यह तय हो पाना बाकी है।

भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, पीस पार्टी और तमाम स्वतंत्र उम्मीदवारों की दस्तक इन गलियों में है। जहां बरसों से धुआं का राज है। ठंड हो या गर्मी इनकी भट्ठियों में लोहा तप कर पानी और उसके बाद विभन्न आकार में ढल जाते हैं। मगर, इसकी किस्मत नहीं बदल पा रही है। कोयले की भट्ठी पर एनजीटी ने सवाल उठाया था। एलपीजी का प्रयोग सफल नहीं हो पाया। क्योंकि इस गैस में प्रेशर कम मिला। करूला क्षेत्र में इसका प्रयोग हुआ, लेकिन कारगर नहीं हो पाया। पीएनजी का ठेका टोरेंट कंपनी के पास है। शहरी के उन क्षेत्रों में अब तक पाइप लाइन ही नहीं पहुंच पायी है, जहां पीतल और धातु की ढलाई होती है।

धातु उद्योग: फैक्ट फाइल
वार्षिक कारोबार- आठ से 10,000 करोड़
शहरी क्षेत्र में भट्ठियां- 3000 से 4000
देहात क्षेत्र में भट्ठियां- 30,000
शहरी क्षेत्र के मोहल्ले: बरबलान, पीरजादा, लाल मस्जिद, वारसीनगर, करूला, चक्कर की मिलक, मैनाठेर, पक्का बाग
देहात के क्षेत्र: भोजपुर, अगवानपुर, गनेशपुर,सीलमपुर, ढक्का- डिलारी, कुंदरकी, रोशनपुर

मैनाठेर के मेराज पाशा का कहना है कि हमारे उत्पाद का चीन के सामनों से मुकाबला है। सुविधाएं हैं नहीं और तमाम विभागीय अड़चन ऊपर से हैं। सरकार को इस कारोबार को बचाने का प्रयास करना होगा। जन प्रतिनिधि हमारे इस कार्य में मददगार हो सकते हैं। मगर अग तक के प्रयास बेदम हैं।

दस्तकार फहीम कहते हैं कि हमारी राजनीति में कोई पैरवी नहीं है। विधायक, सांसद और जनप्रतिनिधि समारोह में फीता काटने आते हैंञ मगर सरकार में चुप हो जाते हैं। महंगायी आसमान पर है। सुविधा का कहीं नाम तक नहीं। पुलिस हमारे ट्रेड के लोगों का सटोरिया तक बनाकर जेल भेज चुकी है। इस परंपरागत कारोबार को बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

पीएमओ की टीम आई थी: आजम
हस्त शिल्प बोर्ड के पूर्व सदस्य मोहम्मद आजम अंसारी कहते हैं कि मुरादाबाद की दुनिया भर में पीतल के कारोबार की पहचान है। कुशल श्रमिकों और अकुशल दस्तकारों को सरकारी सहायता की जरूरत है। हाल में प्रधानमंत्री कार्यालय की टीम यहां आई थी। जिसमें आईआईटी कानपुर, इसरो के वैज्ञानिक और पीएमओ की सलाहकार समिति के सदस्यों ने यहां का कारोबार देखा। लोगों से बात की। काम के तरीके में सुधार का सुझाव दिया। इस बात का भरोसा भी दिया कि सरकार की ओर से दस्तकारों को आधुनिक भट्ठी का प्रबंध किया जाएगा।

सांसद डा. एसटी हसन का कहना है कि सालों से प्रदूषण के नाम पर विभागीय चाबुक चल रहा है। दस्तकारों के घर की भट्ठियों से धुआं निकलने और पर्यावरण खराब होने के आरोप इनके हुनर पर चस्पा कर दिया जाता है। इस मुद्दे पर हमने संसद में प्रश्न किया। सरकार से जानना चाहा कि क्या मुरादाबाद में कोयले की भट्ठियां प्रतिबंधित हैं? तो सरकार ने लिखित बताया कि ऐसा नहीं है। मेरे पास मंत्रालय का पत्र है। मगर, उससे कुछ भी नहीं होने वाला है।