आखिर क्या है घुघुतिया पर्व, कैसे शुरू हुआ ये त्योहार, क्या है इसके पीछे की कहानी

आखिर क्या है घुघुतिया पर्व, कैसे शुरू हुआ ये त्योहार, क्या है इसके पीछे की कहानी

अमृत विचार, हल्द्वानी। उत्तराखंड के कुमाऊं का खास त्योहार घुघुतिया पर्व अपने आप में एक अनोखा पर्व है जिसकी एक खास कहानी इस पर्व को और खास बनाती है। पक्षियों को लेकर वैसे तो हमारे देश सहित दुनिया में कई पर्व मनाए जाते हैं लेकिन कुमाऊं के इस खास पर्व का केंद्र कौआ है। इस …

अमृत विचार, हल्द्वानी। उत्तराखंड के कुमाऊं का खास त्योहार घुघुतिया पर्व अपने आप में एक अनोखा पर्व है जिसकी एक खास कहानी इस पर्व को और खास बनाती है। पक्षियों को लेकर वैसे तो हमारे देश सहित दुनिया में कई पर्व मनाए जाते हैं लेकिन कुमाऊं के इस खास पर्व का केंद्र कौआ है।

इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन घुघुत बनाया जाता है। इस त्योहार की अपनी अलग पहचान है, इस त्यौहार को उत्तराखंड में “उत्तरायणी” के नाम से मनाया जाता है जबकि गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरह “खिचड़ी सक्रांति” के नाम से मनाया जाता है। यह त्योहार विशेषकर बच्चों और कौओं के बीच एक संवाद भी है। इस त्यौहार के दिन सभी बच्चे सुबह उठकर कौओं को बुलाकर घुघुतिया सहित कई तरह के पकवान खिलाते हैं।

इस दिन बच्चे आवाज लगाकर “काले कौआ काले घुघुती बड़ा खाले ,लै कौआ बड़ा , आपु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा ,रखिये सबुने कै निरोग , सुख समृधि दिए रोज रोज कहते नजर आते हैं जिसका अर्थ होता है काले कौआ आकर घुघुती(इस दिन के लिए बनाया गया पकवान) , बड़ा (उरद का बना हुए पकवान) खाले , ले कौव्वे खाने को बड़ा ले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे , सभी लोगो को स्वस्थ रख और समृधि दे।

इस पर्व को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा प्रचलित है कि जब कुमाउं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे , तो उस समय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के मरने के बाद राज्य की बागडोर उसके हाथ में आ जाएगी। एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए और वहां उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना की और कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद को संतान का सुख प्राप्त हो गया , जिसका नाम “निर्भय चंद” पड़ा।

राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से “घुघती” के नाम से पुकारा करती थी और अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बांधकर रखती थी। मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि “हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओ को दे दूंगी” उसको डराने के लिए रानी “काले कौआ काले घुघुती माला खाले” बोलकर डराती थी। ऐसा करने से कौऐ आ जाते थे और रानी कौओ को खाने के लिए कुछ दे दिया करती थी। धीरे धीरे निर्भय और कौओ की दोस्ती हो गयी, दूसरी तरफ मंत्री घुघुती(निर्भय) को मार कर राज पाठ हड़पने की उम्मीद लगाये रहता था ताकि उसे राजगद्दी प्राप्त हो सके।

एक दिन मंत्री ने अपने साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। घुघुती (निर्भय) जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुप चाप उठा कर ले गया। जब मंत्री घुघुती (निर्भय) को जंगल की ओर ले जा रहा था तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती(निर्भय) को देख लिया और जोर जोर से कांव-कांव करने लगा, यह शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकालकर लहराने लगा, उस कौवे ने वह माला घुघुती(निर्भय) से छीन ली, उस कौवे की आवाज़ को सुनकर उसके साथी कौवे भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियों पर नुकीली चोंचो से हमला कर दिया, हमले से घायल होकर मंत्री और उसके साथी मौका देख कर जंगल से भाग निकले।

इधर राजमहल में सभी घुघुती(निर्भय) के अचानक गायब हो जाने से परेशान थे, तभी एक कौवे ने घुघुती(निर्भय) की मोती की माला रानी के सामने फेंक दी, यह देखकर सभी को संदेह हुआ कि कौवे को घुघुती(निर्भय) के बारे में पता है इसलिए सभी कौवे के पीछे जंगल में जा पहुंचे और उन्हें पेड़ के निचे निर्भय दिखाई दिया। उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गयी। जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा है तो राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिय। घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौवों को भी बुलाकर खिला दे और यह कथा धीरे-धीरे सारे कुमाउं में फैल गयी और इस त्यौहार ने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन मीठे आटे से जिसे “घुघुत” भी कहा जाता है उसकी माला बच्चों को पहनाई जाती है और पकवान बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार घुघुतिया त्यौहार की ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से ही जाना जाता है।

महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने देह त्याग ने के लिए मकर सक्रांति का ही दिन चुना था। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही साथ इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है , उत्तर दिशा में देवताओं का वास भी माना जाता है इसलिए इस दिन जप-तप , दान-स्नान , श्राद्ध-तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।

ताजा समाचार

Kanpur: परीक्षा में कम अंक पाने पर छात्रा ने खाया जहरीला पदार्थ, मौत, परिजनों में मचा कोहराम
Kanpur: रेलवे लाइन किनारे मिला युवक का शव, कैंसर की बीमारी से था पीड़ित, आत्महत्या की आशंका
Kanpur: मार्निंगवॉक करने के बाद युवक फंदे पर झूला, खिड़की से शव लटका देख परिजनों में मची चीख-पुकार, जानिए पूरा मामला
IPL 2025: केकेआर के खिलाफ पंजाब ने जीता टॉस, चुनी पहले बल्‍लेबाजी
Pension Yojana: निराश्रित महिला पेंशन की हर लाभार्थी का होगा सत्यापन, योजना से वंचित होंगे अपात्र
कानपुर में स्कूली बस व स्कार्पियों की टक्कर से दो की गई जान: हेलमेट हवा में उड़ कर गिरा...सिर पर आईं गंभीर चोटें