अर्थव्यवस्था के अवरोध

टीकाकरण तेज होने पर महामारी से प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की उम्मीद बनी थी, हालांकि कई अवरोध अब भी बने हुए हैं। कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं और तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। महामारी का प्रकोप बढ़ने के साथ-साथ कोविड के नए संस्करण ओमिक्रान से संक्रमित व्यक्तियों …
टीकाकरण तेज होने पर महामारी से प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की उम्मीद बनी थी, हालांकि कई अवरोध अब भी बने हुए हैं। कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं और तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। महामारी का प्रकोप बढ़ने के साथ-साथ कोविड के नए संस्करण ओमिक्रान से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या एक हजार के पार हो गई है।
पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना के 16,764 नए मामले सामने आए हैं। ओमिक्रान से 23 राज्यों में 1270 व्यक्ति संक्रमित पाए गए हैं। कारोबारी गतिविधियों को फिर से सीमित किया जा रहा है। रिजर्व बैंक दूसरी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती मुद्रास्फीति दबाव के साथ कोरोना वायरस का नया स्वरूप ओमीक्रान अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।
बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मजबूत और सतत पुनरुद्धार निजी निवेश तथा निजी खपत में तेजी पर निर्भर है। लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों अब भी महामारी-पूर्व स्तर से नीचे हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि लागत बढ़ने की वजह से उत्पन्न मुद्रास्फीति को लेकर चिंता बनी हुई है। उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से हर वस्तु के दाम बढ़े हैं।
इस समय फुटकर और थोक दोनों महंगाई अपने चरम पर हैं। खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें काबू में नहीं आ पा रही हैं, जबकि पैदावार बाजार में आनी शुरू हो गई है। खाद्य सामग्री और तेल वगैरह की कीमतों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। लोगों के कारोबार ठप पड़े हैं, बहुत सारे लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं, आमदनी पहले से घटी है। ऐसे में बाजार में सुस्ती है। यानी निजी निवेश और खपत की जो अपेक्षा रिजर्व बैंक कर रहा है, उसके अभी बढ़ने की उम्मीद नजर नहीं आ रही।
भारतीय रिजर्व बैंक की चिंता स्वाभाविक है। मगर महामारी पूर्व की स्थिति में लौटने की राह अभी आसान नहीं हुई है। हालांकि इसके लिए रिजर्व बैंक लगातार प्रयास करता रहा है। बैंक ने आगाह किया है कि गैर-निष्पादित परिसंपत्ति(एनपीए) सितंबर, 2022 में उछलकर 8.1-9.5 प्रतिशत तक जा सकता है, जो सितंबर, 2021 में 6.9 प्रतिशत था।
एनपीए को लेकर लंबे समय से चिंता जाहिर की जाती रही है, पर रिजर्व बैंक ने इस पर काबू पाने के लिए कोई कठोर और व्यावहारिक कदम नहीं उठाया है। इसकी वजह से सरकारी बैंकों का बहुत सारा पैसा बट्टे खाते में चला गया है। खाद्य और ऊर्जा कीमतों को काबू में लाने के लिए आपूर्ति के मोर्चे पर ठोस उपाय किए जाने चाहिएं। उम्मीद है कि एनपीए की उगाही के लिए व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे।