नवरात्रि विशेष: कूड़ा बीनने वाले हाथों में थमाईं किताबें, बेसहारों के लिए गुंजन बनी मिसाल

नवरात्रि विशेष: कूड़ा बीनने वाले हाथों में थमाईं किताबें, बेसहारों के लिए गुंजन बनी मिसाल

हल्द्वानी, अमृत विचार। कुछ साल पहले तक जिन बच्चों के हाथ में कटोरे या फिर कूड़ा उड़ाने वाले थैले हुआ करते थे, आज उन बच्चों के हाथ में किताबें हैं। वीरांगना समिति की संचालिका इन बच्चों के जीवन में उम्मीद की किरण बनकर आई हैं। उन्होंने निर्धन बच्चों को चिन्हित कर काउंसिंग की और पढ़ाई …

हल्द्वानी, अमृत विचार। कुछ साल पहले तक जिन बच्चों के हाथ में कटोरे या फिर कूड़ा उड़ाने वाले थैले हुआ करते थे, आज उन बच्चों के हाथ में किताबें हैं। वीरांगना समिति की संचालिका इन बच्चों के जीवन में उम्मीद की किरण बनकर आई हैं। उन्होंने निर्धन बच्चों को चिन्हित कर काउंसिंग की और पढ़ाई के लिए राजी किया। पिछले आठ सालों के दौरान गुंजन ने 232 बच्चों को स्कूल भेजा है।

निर्धन बच्चों के साथ वीरांगना संस्था की संचालिका गुंजन बिष्ट अरोरा।

मंगलपड़ाव निवासी वीरांगना संस्था संचालिका गुंजन बिष्ट अरोरा वर्ष 2013 से इस मुहिम से जुड़ीं। उन्होंने मलिन बस्तियों के भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों को चिन्हित किया। बच्चों के साथ ही अभिभावकों की काउंसलिंग कर स्कूल भेजने के लिए राजी किया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि बीते आठ सालों के दौरान 232 बच्चों को स्कूल भेजा गया। इसमें से 12 बच्चे इंटर पास कर चुके हैं। जबकि 10 हाईस्कूल व अन्य प्राइमरी में पढ़ रहे हैं। गुंजन के प्रयासों के बाद इन बच्चों के बेहतर भविष्य का रास्ता साफ हुआ है।

खुद उठातीं हैं शिक्षा का खर्च
गुंजन बताती हैं कि वह अपनी जेब से निर्धन बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च उठातीं हैं। संस्था के कार्यालय में बनी बाल नर्सरी में छोटे बच्चों को पढ़ाया जाता है। इसके लिए एक शिक्षिका की नियुक्ति की है। शिक्षिका का वेतन भी गुंजन खुद देतीं हैं। वह हर शनिवार को खुद बच्चों को पढ़ाने भी जाती हैं। गुंजन ने हाल ही में सहकारी बैंक में नौकरी पाई है। नौकरी के बाद बचा हुआ समय वहइन बच्चों के साथ बिताती हैं।

नशे के खिलाफ भी जगाई अलख
गुंजन ने मलिन बस्ती क्षेत्र के नौनिहालों के बीच नशे के खिलाफ अलख भी जगाई है। वंचित बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने के दौरान कई ऐसे भी बच्चे मिले, जो नशे के आदी हो चुके थे। गुंजन ने आगे बढ़कर इन बच्चों को नशे के दलदल से बाहर निकाला। बाल श्रम करने वाले बच्चों को भी स्कूल भेजा।

सरकार से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला
गुंजन बताती हैं कि इस मुहिम को सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। उनकी संस्था को आज तक सरकार ने कोई मदद नहीं की। अलबत्ता स्थानीय स्तर पर पुलिस प्रशासन और नागरिकों ने गुंजन के प्रयास को पूरा सहयोग किया।