सुप्रीम फटकार

विभिन्न न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की कमी से जूझ रहे हैं। न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों को लेकर सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि सरकार शीर्ष अदालत का सम्मान नहीं कर रही है। सरकार का यह रवैया न्यायिक संस्थाओं को कमजोर बना …
विभिन्न न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की कमी से जूझ रहे हैं। न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों को लेकर सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि सरकार शीर्ष अदालत का सम्मान नहीं कर रही है।
सरकार का यह रवैया न्यायिक संस्थाओं को कमजोर बना रहा है। इससे पहले भी शीर्ष अदालत ने अगस्त माह में देश भर के न्यायाधिकरणों में रिक्तियों के संबंध में जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए कहा था कि यह खेदजनक है कि अधिनियम के चार साल पहले लागू होने के बावजूद, जीएसटी न्यायाधिकरणों की स्थापना नहीं की गई है। 2016 में, जीएसटी विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया था और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा अधिनियम 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। अधिनियम की धारा 109 एक जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन को अनिवार्य करती है, जिसे अधिनियम के अस्तित्व में आने के चार साल बाद भी गठित नहीं किया गया है।
पिछले कुछ महीनों में कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को शर्मसार किया है। सोमवार तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने अहम टिप्पणी की जिसमें इस बात पर जोर दिया कि वह केंद्र सरकार के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती। यह तो साफ है कि सरकार इस अदालत के फैसलों का सम्मान नहीं करना चाहती। अब हमारे पास न्यायाधिकरण सुधार कानून पर रोक लगाने या न्यायाधिकरणों को बंद करने का विकल्प है या फिर हम स्वयं ही उनमें लोगों की नियुक्ति करें या अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दें। दरअसल विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या से निपटने के लिए विभिन्न विधानों के तहत घरेलू अधिकरणों और अन्य अधिकरणों की स्थापना की जाती है। अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे, इन्हें 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में शामिल किया गया।
न्यायाधिकरण कानून के तहत बनते हैं और प्रक्रिया भी निर्धारित है। सर्वोच्च अदालत ने आशंका जताई है कि कुछ लॉबी इन रिक्तियों को नहीं भरने के लिए काम कर रही हैं। यह आशंका इसलिए भी मायने रखती है, क्योंकि कई महत्वपूर्ण न्यायाधिकरणों और राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण (एनसीएलटी), ऋण वसूली न्यायाधीकरण (डीआरटी), दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण (टीडीएसएटी) जैसे अपीलीय न्यायाधिकरणों में करीब 250 पद रिक्त पड़े हैं। केंद्र की ओर से विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्त पदों को भरने में देरी उनके कामकाज को प्रभावित कर रही है और लोगों को कानूनी राहत नहीं मिल पा रही है। त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधिकरणों में चयन और नियुक्तियों की प्रक्रिया को तेज करने की तुरंत आवश्यकता है ताकि उपभोक्ताओं की शिकायतों का तेजी से निस्तारण हो सके।